Jas Ka Phool

Jas Ka Phool

Language:

Hindi

Pages:

224

Country of Origin:

India

Age Range:

18-100

Average Reading Time

448 mins

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Book Description

प्रकट में तो यह उपन्यास एक हिन्दू लड़के और मुस्लिम लड़की की प्रेम कहानी है, जिसकी छोटे शहर से चलकर बड़े शहर तक की यात्रा रोमांच, रोमांस और इनके बीच जीवन-यथार्थ के अच्छे-बुरे और कड़वे-मीठे अनुभवों से गुज़रती है। अनचाहे, अनजाने ही ऐसी स्थिति बनती है कि नायक, वह हिन्दू लड़का दोस्तों के बीच शाहरुख़ और मुस्लिम लड़की यानी नायिका, काजोल के नाम से पुकारे जाने लगते हैं। यह एक आम घटना है जो अक्सर कहीं भी घटित होती है। प्रेम प्राय: असफलता से नालबद्ध है। अक्सर ऐसे प्रेम की परिणति हताशा की राह चलकर शराबख़ाने से होती हुई ‘देवदासीय मृत्यु’ है। लेकिन इस उपन्यास में प्रेम उस शक्तिपुंज की भाँति अदृश्य रूप से मौजूद है जो एक अर्द्धशिक्षित लड़के को फ़‍िल्मों जैसी आभासी दुनिया से बाहर लाकर तमाम हताशा, कुंठा और अभावों के बावजूद उसके भीतर के करुण मनुष्य को पूरी मानवीय मार्मिकता के साथ सुरक्षित रखता है। नायक शाहरुख़ प्रेम की उस तरल उपस्थिति के कारण ही अपनी विपरीत परिस्थितियों से प्रतिरोध की शक्ति हासिल करता है। इसी के साथ उपन्यास में उसके वे तमाम दोस्त हैं जो हिन्दू-मुस्लिम होते हुए, और अपनी अशिक्षा के बावजूद, अपनी ज़रूरी मनुष्यता के साथ अपने अबोध मन की मार्मिक सांगिकता लिए मित्रता के लम्बे और अटूट रिश्तों से वचनबद्ध हैं। बाज़ार का क्रूर आगमन और भूमंडलीकरण द्वारा तेज़ी से बदलता समय समाज और रिश्तों को कैसे और कितनी तेज़ी से प्रभावित कर रहा है, इससे वे अनभिज्ञ हैं। यह भी हमारे समय का एक भयावह सच है, जो इस उपन्यास में कथ्यात्मक ज़रूरत के साथ मौजूद है। पाठकों को यह दिलचस्प लगेगा कि इन पात्रों की उपस्थिति और अबोध जिज्ञासाएँ अपनी मासूमियत में एक ऐसा रोचक संसार भी रचती हैं जिसकी जटिलता से वे अनजान हैं। इस उपन्यास में व्यंग्य की एक समानान्‍तर धारा पात्रों की ‘मौलिक धज’ को प्रकट करने के कारण ज़रूरी थी, लेकिन वह सहज ही रोचक भी लगेगी। बहरहाल उक्त सामाजिक दबावों और विसंगतियों के अतिरिक्त यह उपन्यास प्रेम, अलगाव और नायक की ज़‍िन्‍दगी में आए अनचाहे सेक्स अनुभवों को भी रोचक भाषा के साथ प्रस्तुत करता है।

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