
Pandwani : Mahabharat Ki Ek Lok Natya Shaily
Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
116
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
232 mins
Book Description
‘पंडवानी’ छत्तीसगढ़ का प्रमुख लोकनाट्य है जो महान आख्यान ‘महाभारत’ पर आधारित है। पंडवानी का अर्थ है पांडवों की कथा। यह एकपात्रीय नाट्यरूप है जिसे पुरुष एवं महिलाएँ दोनों वर्गों के कलाकार प्रस्तुत करते हैं।</p> <p>‘पंडवानी’ का स्वरूप आरम्भ में गाथा रूप में था, जिसे परधान गोंड गाते थे। परधानों से यह गाथा सम्पूर्ण गोंडवाना में प्रचलित हुई। कलाकारों की एक अन्य घुमन्तू जाति देवारों ने इसे परधानों से अपनाया और उनके द्वारा यह सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ में फैल गई।</p> <p>19वीं शताब्दी के अन्तिम वर्षों में इस गाथा का विकास लोकनाट्य रूप में होने लगा और बीसवीं शताब्दी में पूर्ण रूप से नाट्यरूप में विकसित होकर स्थापित हो गई। हालाँकि इसका आरम्भिक स्वरूप आज भी मंडला-डिंडोरी क्षेत्र में विद्यमान है।</p> <p>दरअसल, महाभारत से प्रेरित सम्पूर्ण भारत में अनेक नाट्यों एवं कलारूपों का विकास हुआ है। महावर जी की ‘पंडवानी’ न केवल इसके भिन्न रूपों की विस्तार से चर्चा करती है बल्कि इससे यह भी पता चलता है कि ‘पंडवानी’ की मूल गाथा तो महाभारत है लेकिन लोकरंजन एवं स्थानीय प्रभाववश इसमें लोककथाएँ, लोकनायक और स्थानों के नाम का कवित्त में समावेश प्राय: कर लिया जाता है।</p> <p>महावर जी की ‘पंडवानी’ के अनुसार कालान्तर में इस नाट्यरूप की विकास-यात्रा में गायकों ने—सबल सिंह चौहान के महाभारत को आधार बना लिया और इसके गोंड कथानक का परित्याग कर दिया। व्यापक शोध एवं रुचि से लिखी गई यह किताब न केवल पंडवानी बल्कि छत्तीसगढ़ की अन्य लोक परम्पराओं से भी हमारा परिचय कराती है।</p> <p>यह किताब पंडवानी के विश्वप्रसिद्ध कलाकार तीजन बाई, झाडुराम देवांगन, पुनाराम निषाद एवं अन्य कलाकारों की चर्चा के साथ यह भी बताती है कि वर्तमान में, छत्तीसगढ़ में, पंडवानी का विस्तार हो रहा है और इस विकासमान धारा में पंडवानी के दर्जनों कलाकार सक्रिय हैं।