
Chhattisgarh Ki Shilpkala
Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
120
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
240 mins
Book Description
छत्तीसगढ़ अपनी पुरासम्पदा की दृष्टि से अत्यन्त समृद्ध है और यहाँ अनेक पुरातात्त्विक महत्त्व के स्थल मौजूद हैं। यहाँ का पुरातात्त्विक इतिहास पूर्व गुप्तकाल से ही उपलब्ध होने लगता है।</p> <p>छत्तीसगढ़ में ऐतिहासिक काल की सभ्यता का विकास आरम्भिक काल से हो गया था, जिसका प्रमाण यहाँ से प्राप्त हुई मुद्राएँ, शिलालेख, ताम्रपत्र एवं पुरासम्पदा हैं। यहाँ अनेक स्थानों से प्राचीन मुद्राएँ (सिक्के) प्राप्त हुई हैं। नारापुर, उदेला, ठठारी (अकलतरा) आदि स्थानों से पञ्च मार्क मुद्राएँ प्राप्त हुई हैं।</p> <p>प्रदेश में धातु-शिल्प का प्रचलन था और अत्यन्त उच्चकोटि की प्रतिमाएँ यहाँ ढाली जाती थीं। इस प्रदेश में लौह शिल्प की भी प्राचीन परम्परा विद्यमान है। अगरिया जनजाति लौह बनाती थी। इस लोहे से वे लोग खेती के औज़ार तथा दैनंदिन उपयोग में आनेवाली वस्तुएँ तैयार करते थे।</p> <p>छत्तीसगढ़ में ईंटों द्वारा निर्मित मन्दिर शैली भी प्राचीन काल से विद्यमान है। सिरपुर का लक्ष्मण मन्दिर इस शैली की पकाई हुई ईंटों से निर्मित एक विशाल एवं भव्य इमारत है। मृणमूर्तियों की कलाकृतियाँ छत्तीसगढ़ के अनेक पुरातात्त्विक स्थलों से प्राप्त होती हैं। मृणमूर्तियों में खिलौने, मुद्राएँ, पशु आकृतियाँ प्रमुख हैं। ये मृणमूर्तियाँ भी उतनी ही प्राचीन हैं जितनी कि पुरास्थलों से प्राप्त होनेवाली अन्य कलाकृतियाँ व सामग्री।</p> <p>इस पुस्तक में विद्वान लेखक ने छत्तीसगढ़ के सभी पारम्परिक शिल्प-रूपों का प्रामाणिक परिचय देते हुए प्रदेश की बहुमूल्य थाती को सँजोया है। आशा है, पाठक इस ग्रन्थ को उपयोगी पाएँगे और अपनी महान सांस्कृतिक धरोहर से परिचित होंगे।