An Odyssey Through The Dark
Author:
Rehan RazaPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
EnglishCategory:
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Price: ₹ 200
₹
250
Available
A flourishing career, a passionate love affair and a lasting friendship come in the way of an unforgiving disaster. What ensues is a desperate attempt to hold onto the pieces that are falling apart.
The pandemic not just ravaged the lives of millions of people but also bolstered the feelings of love, friendship and brotherhood in its wake. When the world was collapsing under COVID-19, a group of youngsters was busy salvaging humanity. While the Delhiites were adrift on the second wave, the heroic efforts of Rahul, a small-town boy, and Aditi, a gorgeous, affluent and qualified doctor with a benevolent heart, together with the support of the district administration’s office proved that not all heroes wear capes. But are these heroes ready to pay the price for providing succour to others? Will they be magnanimous enough to let go of their own dreams, aspirations and even their life as they devote their time and resources to provide relief to strangers? Will their love tide over the unforgiving disaster that has gripped the world?
ISBN: 9789355211903
Pages: 204
Avg Reading Time: 7 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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वे कहते हैं, ‘‘प्रश्न केवल विकास के विरोध का नहीं है, ज़िन्दा रहने के अधिकार की रक्षा का है। जिन परियोजनाओं को सरकारी मीडिया और शासन व अर्थनीति पर हावी आभिजात्य वर्ग देश के त्वरित विकास के लिए अनिवार्य मानता है, उन परियोजनाओं के औचित्य को चुनौती देनेवालों को विदेशी एजेंट, देशद्रोही और विकास के दुश्मन के रूप में प्रचारित किया जाता है।’’
सुन्दरलाल बहुगुणा भी इस दृष्टि से बौद्धिक समाज में नायक और खलनायक दोनों हैं। लेकिन हिमालय, गंगा, जंगल और टिहरी बाँध को लेकर जो सवाल बहुगुणा ने खड़े किए हैं और सरकार की प्रकृति-विरोधी नीतियों का पर्दाफ़ाश किया है, उसमें शायद ही किसी को आपत्ति हो। साथ ही उन्होंने विकास की जो वैकल्पिक दृष्टि दी है, उससे भी किसी को परहेज़ नहीं होगा।
यह पुस्तक ‘धरती की पुकार’ बहुगुणा जी के चिन्तन का सार है। इसमें ‘चिपको आन्दोलन’ से लेकर टिहरी बाँध के विरोध में उनके लम्बे उपवासों तक की चिन्तनभूमि के दर्शन होते हैं। आशा है, यह पुस्तक विकास और पर्यावरण के रिश्तों को सही परिप्रेक्ष्य में देखने-समझने में मदद करेगी।
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