Udyog Mein Safalta Ke 36 Mantra
Author:
Girish P. JakhotiyaPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
Management0 Reviews
Price: ₹ 100
₹
125
Unavailable
उद्यमकला की नींव मज़बूत हो तभी इमारत मज़बूत होगी। उद्योग और उद्यमकला के लक्ष्य का निर्धारण कैसे किया जाता है यह हम 'प्रैक्टिकली' देखेंगे। मूलतः ‘उद्यमी’ ही होना और सम्पत्ति अर्जित करना है, इस बात का संकल्प करना उद्यमी के लिए जरूरी है। रिलायन्स के कर्ताधर्ता स्वर्गीय धीरूभाई अंबानी का, ‘बड़ा बनने का नशा है।' यह प्रिय घोष वाक्य था। अर्थात् सम्पत्ति कमाने की भी लत लगनी चाहिए। मूलतः उद्यमी होने के लिए पाँच कसौटियाँ हैं। उद्यमी बनने का निर्णय करने पर इन कसौटियों को पार करने के लिए उचित 'अभ्यास' करना आवश्यक है। कौन-सी हैं ये कसौटियाँ? ये कसौटियाँ हैं—सम्पत्ति अर्जित करने के लिए लगन, स्वभाव और आचार में लचीलापन, व्यवसाय प्रक्रिया के रहस्य की जानकारी, उद्योग की शृंखला, परस्पर सम्बन्ध निर्माण करने की तैयारी तथा बिना थके, बिना घबराए, बिना निराश हुए कोशिश करते रहने की मानसिक-शारीरिक-सांस्कृतिक तैयारी।
ISBN: 9788126717859
Pages: 151
Avg Reading Time: 5 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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डॉ. कुसुम लुनिया का नाटक ‘ऊँची उड़ान’ कितना मार्मिक है, इसका अनुमान आप इसी तथ्य से लगा सकते हैं कि इसकी भूमिका लिखने के लिए जब मैंने इसे पढ़ा तो तीन-चार बार मेरी आँखों में आँसू छलक आए। कन्या भ्रूण-हत्या जैसे शुष्क और समाज-सुधार सम्बन्धी विषय पर कोई नाटक हो और उसे भी देखना नहीं, पढ़ना हो तो वह अपने आप में चुनौती भरा काम है लेकिन इस नाटक के कथानक, पात्रों, कथनोपकथनों और जिज्ञासा ने मुझे इस क़दर बाँधे रखा, जैसे किसी महान साहित्यकार की रचना बाँधे रखती है।
मैं सोचता रहा कि यदि ‘ऊँची उड़ान’ का कोई श्रेष्ठ मंचन कर सके तो इस नाटक को देश में लाखों दर्शक मिल सकते हैं। यह अकेला नाटक लोगों को भ्रूण-हत्या से विरत करने में वह भूमिका अदा कर सकता है जो साधु-संतों और समाज-सुधारकों के सैकड़ों-सैकड़ों उपदेश नहीं कर सकते। वास्तव में कुसुम जी ने समाज-सुधारकों के हाथों में एक ब्रह्मास्त्र थमा दिया है।
यह नाटक यों तो भ्रूण-हत्या पर केन्द्रित है लेकिन इसमें स्त्री-शक्ति का चमत्कारी रूप प्रकट हुआ है। संकल्प, संस्कार और चरित्र-बल के आधार पर कोई स्त्री कहाँ से कहाँ पहुँच सकती है, यह इस नाटक से पता चलता है। जिस भ्रूण की हत्या का आयोजन किया जा रहा था, उसकी रक्षा के बाद वही भ्रूण कैसा दिव्य, कैसा भव्य और कैसा काम्य स्वरूप धारण करता है, इसका जीवन्त और प्रेरक चित्रण कुसुम जी ने अपनी कृति में किया है। भ्रूण-हत्या जैसे दुखद प्रसंग को प्रतिभाशाली लेखिका ने सुखान्त नाटक का रूप देने में जो सफलता अर्जित की है, वह दुर्लभ है।
—वेद प्रताप वैदिक
Sampatti ka Srijan
- Author Name:
R.M. Lala
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सन् 1868 में जमशेतजी टाटा ने एक व्यापारिक कम्पनी की शुरुआत की तो शायद ही किसी ने कल्पना की होगी कि वे आधुनिक भारत के निर्माण की दिशा में नए अध्याय की शुरुआत कर रहे हैं। जमशेतजी के सामने यह स्पष्ट था कि भारत के औद्योगिक विकास के लिए तीन घटक सबसे महत्त्वपूर्ण हैं : पहला इस्पात, दूसरा हाइड्रो-इलेक्ट्रिक पावर और तीसरा तकनीकी शिक्षा और शोध। आज लगभग डेढ़ सदी बाद टाटा परिवार दावा कर सकता है कि उन्होंने अपने संस्थापक के सपनों को पूर्णतया साकार किया है।
लेकिन सफलता की यह मंज़िल आसान नहीं रही है। इस पुस्तक में पहली बार हम जान पाते हैं कि 1992 के आर्थिक सुधारों के बाद, कम्पनी ने किस प्रकार अपना रास्ता बनाया। पुस्तक का उपसंहार स्वयं रतन टाटा ने लिखा है और इसमें उन्होंने स्पष्ट रूप से, सहकर्मियों के प्रतिरोध समेत, उन तमाम कठिनाइयों के बारे में बताया है जिनका सामना उन्हें नई परिस्थितियों के अनुसार ढलने में करना पड़ा।
यह बहुपठित और बहुचर्चित पुस्तक हमें विस्तार से बताती है कि भारतीय राष्ट्र के निर्माण में, न सिर्फ़ उद्यमी के रूप में बल्कि फैक्टरी सुधारों, श्रम एवं सामाजिक कल्याण, औषधीय शोध, उच्च-शिक्षा, संस्कृति-कला और ग्रामीण विकास आदि क्षेत्रों में अपने योगदान के रूप में भी टाटा ने कितनी अहम भूमिका निभाई है।
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