मगध - अतीत का संग्रह

मगध - अतीत का संग्रह

“मगध” - एक नगर, साम्राज्य, गणराज्य, युद्ध, महाप्रलय, सत्ता, पतन, पुनरुत्थान - सब कुछ और बहुत कुछ।

कुछ कथ्य, कुछ अकथ्य।


“मगध” में संग्रहित कविताएँ इतिहास नहीं हैं, बल्कि इतिहास का सम्मोहन, मायालोक, आंतरिक स्मृति और चेतना हैं। उजड़ चुके नगरों की गूँज हैं, उन पत्थरों की चीख हैं जिन पर कभी सिंहासन था; उन अवशेषों की तड़प है जिनके सिरों पर मुकुट था।


“मगध”, श्रीकांत वर्मा की सबसे प्रभावशाली रचनाओं में से एक है। इसमें आठ–दस कविताओं का नहीं, बल्कि 56 कविताओं का संग्रह है, जिनमें कवि ने प्राचीन महाजनपदों (मगध, अवन्ती, कोसल, काशी, श्रावस्ती, चम्पा, मिथिला, कोसाम्बी आदि) की गाथा वर्णनात्मक, प्रतीकात्मक और मनोवैज्ञानिक रूप में कही है।


“मगध” केवल अतीत का पुनर्कथन नहीं है; यह वर्तमान को भी परावर्तित करता है। श्रीकांत वर्मा ने अपने कवितात्मक दृष्टिकोण में दिखाया है कि कैसे सत्ता, हुकूमत, अधिकार, भ्रष्टाचार, नैतिक पतन, जो कभी प्राचीन राजाओं के समय थे, आज भी प्रासंगिक हैं। इतिहास के पद चिन्हों की झांकी दिखाते हुए, वे हमें आज की राजनीति और सामाजिक स्थिति पर सोचने को विवश करते हैं।

इस दृष्टिकोण ने “मगध” को सिर्फ काल्पनिक या पुरातन नहीं, बल्कि आज का भी बना दिया है।


मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ, इसकी एक छोटी सी झलक देता हूँ, इसी पुस्तक की एक कविता द्वारा:


अवन्ती में अनाम

क्या इससे कुछ फ़र्क़ पड़ेगा

अगर मैं कहूँ

मैं मगध का नहीं

अवन्ती का हूँ


अवश्य पड़ेगा

तुम अवन्ती के मान लिए जाओगे

मगध को भुलाना पड़ेगा


और तुम

मगध को भुला नहीं पाओगे

जीवन अवन्ती में बिताओगे

तब भी तुम

अवन्ती को जान नहीं पाओगे


तब तुम दोहराओगे

मैं अवन्ती का नहीं

मगध का हूँ

और कोई नहीं मानेगा

बिलबिलाओगे--

"मैं सच कहता हूँ

मगध का हूँ

मैं अवन्ती का नहीं।"

और कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा

मगध के माने नहीं जाओगे

अवन्ती में

पहचाने नहीं जाओगे।


अब इसी अभी के समय में देखिए, अलग अलग प्रदेश के गाँवों से आये, महानगरों में बसे लोगों को, जो उस प्रदेश के हो नहीं पाए और अपने प्रदेश के माने नहीं गए। बिहार के बहुत सारे लोग को मुंबई या दिल्ली में रहते हैं, प्रत्यक्ष उदाहरण हैं।


“मगध” की कविता शैली ऐसे शब्‍द और लय में लिखी गई है कि कम से कम शब्द, लेकिन गहरा अर्थ; अलंकार कम, प्रतीक ज़्यादा। हिन्दी कविता में जो “नयी कविता” (Nayi Kavita) की परंपरा थी, उसमें श्रीकांत वर्मा की यह कृति एक मुकुट की भाँति प्रतीत होती है। उनकी भाषा, उनकी cadence (ताल, लय), उनकी रिक्तताओं में वह अंतर्मन है, वह स्मृति है, वह पीड़ा है जो पाठक को भीतर तक झकझोर देती है।


यह पुस्तक किन पाठकों के लिए उपयुक्त है?

  1. वे पाठक जो हिन्दी कविता में गहराई, बहुमुखी दृष्टिकोण और राजनीतिक-सांस्कृतिक चेतना चाहते हैं।
  2. जो लोग भारत के प्राचीन शहरों, महाजनपदों, संस्कृति-परिवर्तन, सभ्यता के उत्थान-पतन में रुचि रखते हैं।
  3. अभिरुचि रखने वाले साहित्य-चाहक, इतिहास-प्रेमी, विचारशील पाठक।
  4. विद्यार्थी, शोधकर्ता जो भाषा, कविता, समाज, सत्ता, इतिहास के अंतर्संबंधों को समझना चाहते हैं।
  5. लेखक / कवि / अनुवादक - जो महसूस करते हैं कि कविता सिर्फ भाव की अभिव्यक्ति नहीं, बल्कि युग, सत्ता, सामूहिक चेतना की अभिव्यक्ति हो सकती है।
  6. UPSC / Civil Services के विद्यार्थी (mental-model building के लिए)
  7. क्रिटिकल थिंकिंग और गहरे भावनात्मक टेक्स्ट पसंद करने वाले पाठक


पाठकों के लिए चुनौतियाँ:

  1. पृष्ठभूमि का भारीपन: कई कविताएँ नगरों, जनजातियों, घटनाओं, प्राचीन राजाओं और इतिहास पर आधारित हैं। अगर पाठक प्राचीन भारत की राजनीति, भूगोल या इतिहास से परिचित नहीं है, तो उसके अर्थ और गहराई से पूरी तरह नहीं जुड़ पाएगा।
  2. बहुवक्ता शैली की जटिलता: काव्य में कई आवाज़ें, कई दृष्टिकोण, इस से कभी-कभी पाठक भ्रमित हो सकता है कि कौन बोल रहा है, किस काल या संदर्भ की बात हो रही है। इस मोड़ पर बार-बार रुक कर सोचने की ज़रूरत होती है।
  3. सदियों की स्मृति + आधुनिक विमर्श का मेल: कहीं कहीं प्रतीक और भाषा इतनी गूढ़ है कि एकाध बार पढ़ने पर समझना मुश्किल हो सकता है। यहाँ कविताएँ मनोरंजन नहीं हैं , चिंतन है; जिसकी तीव्रता कुछ पाठकों के लिए भारी भी हो सकती है।
  4. अनुवाद की चुनौतियाँ (यदि अंग्रेजी में पढ़ रहे हों): हिन्दी मूल की लय, छंद, सूक्ष्म प्रतीकों का अंग्रेजी में अनुवाद करते समय, कुछ मूल स्वाद खो सकता है। नवीनीकृत अंग्रेजी अनुवाद जिस नफासत व छायात्मकता के साथ हुआ है, फिर भी मूल हिन्दी काव्यभाषा की गहराई पूरी तरह नॉन-ट्रांसफर हो पाए, यह संभव है।


पिछले कुछ सालों में, जब भारत बदले हुए स्वरूप में खुद को देख रहा है, विकास, सत्ता, राजनीतिक कॉलाबोरेशन, आर्थिक असमानताएं, ऐतिहासिक स्मृति की विस्थापना और बहुत कुछ।


“मगध” फिर से खड़ा होता है हमें याद दिलाने कि हर “मगध” चाहे जितना बड़ा हो, आखिर टूटा, बिखरा, और भुला दिया गया।

यह कविता-संग्रह इतिहास मात्र नहीं; चेतावनी है। कविता-भाषा का वह जादू है जिसे समय और सत्ता दोनों दबा नहीं पाए।


अगर आप सोचते हैं कि कविता सिर्फ इमोशन होती है, तो “मगध” की कविताएँ आपको दिखाएगी कि कविताएँ कितनी क्रूर, तीखी और विद्रोहपूर्ण हो सकती हैं। अगर आप मानते हैं कि साहित्य सिर्फ सुरुचि है तो “मगध” झकझोरकर बताएगी कि साहित्य कभी-कभी इतिहास की गंध, मिट्टी की तड़प और सत्ता की गहराई का दर्पण भी हो सकता है।


पढ़िये, और समझिये, क्योंकि यह भी उतना ही जरूरी है, जितना की शायद साँस लेना।


सुनो भाई घुड़सवार, मगध किधर है?....

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