Moh : Maithili Novel
Publisher:
ESAMAAD PRAKASHAN
Language:
Maithili
Pages:
184
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
368 mins
Book Description
उपनिषदक आदेश अछि- “प्रजातन्तुं मा व्यवच्छेत्सीः” अर्थात् ओहि प्रजा-सूत्र केँ नहि तोड़ी। की थिक ई प्रजासूत्र? पिता, पितामह, प्रपितामह, पुत्र, पौत्र, प्रपौत्र आ एकर बीचक पीढ़ीपर ठाढ़ स्वयं ओ व्यक्ति- इएह सात पीढ़ी एक ईकाई थीक। ओकर बीच सम्बन्ध आ ओकर संसार प्रजातन्तु थीक, जकरा ‘मोह’ जोड़ने रहैत अछि। ई मोह जतेक मजबूत रहत, ओ प्रजा-तन्तु ओतेक निस्सन रहत। एही मोहकेँ अक्षुण्ण रखबाक आदेश देल जाइत अछि। इएह मोह एहि उपन्यासक केन्द्रीय भाव थीक आ उपन्यासक नायकक नाम सेहो। आइ उन्नतिक मोल पर परिवार टुटि रहल अछि। ग्लोबलाइजेशन एकटा सुरसा जकाँ सभटा सम्बन्ध आ मोहकेँ गीड़ि रहल अछि। एक दिस वृद्ध-वृद्धाक लेल बनल आश्रम सभ विकास कए रहल अछि तँ दोसर दिस बाबाक सारा पर लागल आमक गाछ सुखा रहल अछि। एहि ‘कंट्रास्ट’क बीच ई उपन्यास आगाँ बढ़ैत अछि आ एही ‘क्लाइमैक्स’ पर आबि एकर अंत सेहो भए जाइत अछि। बीचमे कतेको मोह अबैत अछि– अपन लोथ भाइक लेल वीणाक मोह, अपन दारूपीबा भाइक जीवन बचएबाक लेल वीणाक मोह, अपन भाउजिकेँ अतीतमे देल गेल वचनक पालन करबाक लेल विवश पंडितजीक मोह, बालाक विवाह नीक जकाँ करएबाक लेल कटिबद्ध मोहक मोह– सभटाक मोहक जालकेँ नीकसँ बिनैत, ओकर तानी-भरनी केँ सक्कत बनबैत मोह आ वीणा एहि उपन्यासक नायक-नायिका बनल अछि। प्रकाश, कनक आ आन कतेको देयाद-बाद एकरा नहिं निमाहि सकल छथि। ई उपन्यास आदर्शवादी अछि। अन्हारमे दीप जरएबाक काज करैत अछि। उपन्यासमे सभठाम आशावाद छैक, ओहि प्रजातन्तुकेँ सक्कत बनएबाक प्रयास छै। वीणा अपन पुस्तैनी डीह पर गाछ लगबैत छथि, एही आशासँ जे विदेशमे रहैत हुनक धियापुता छुट्टीमे किछुओ दिनक लेल गाम आओत आ ओही सूत्रसँ बँधाएल रहत। उपन्यासक क्लाइमैक्समे मोह जखनि ओहि प्रजातन्तुकेँ सक्कत होइत देखैत छथि तँ निश्चिन्त भए जाइत छथि आ बाबाक सारा पर सबा सए वर्ष पूर्वक लागल गाछ केँ तिलांजलि दैत छथि, किएक तँ हुनका छह टा गाछ रोपबाक सार्थकता भेटि जाइत छनि, अपन पौत्र सभक लेल, अपन भविष्यक लेल। आइ टुटैत समाज, टुटैत परिवारक बीच सभकेँ मोहक बंधनमे जोड़बाक लेल संघर्ष करैत मोहक प्रति वीणाक शब्दमे लेखिकाक उक्ति सार्थक छनि- “बड़ सोचि कए अहाँक नाम पूर्वजलोकनि रखलन्हि। गाम-घर, सर-समाज, बन्धु-बांधव, पूर्वज, संतति, गाछ-वृक्ष, पशु-पक्षी सभमे अहाँक नाम अछि।” इएह मोह उपन्यासकेँ सार्वजनिक बनबैत अछि, व्यापक बनबैत अछि आ साहित्य बनबैत अछि।