Nastikon ke desh mein: Netherlands
Publisher:
ESAMAAD PRAKASHAN
Language:
Hindi
Pages:
100
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
200 mins
Book Description
लेखक प्रवीण झा शहरों और देशों के विचित्र पहलूओं में रुचि रखते हैं। आईसलैंड के भूतों के बाद यह अगला सफर नीदरलैंड के नास्तिकों की तफ़्तीश में है। इस सफर में वह नास्तिकों, गंजेड़ियों और नशेड़ियों से गुजरते वेश्याओं और डच संस्कृति की विचित्रता पर आधी नींद में लिखते नजर आते हैं। किताब का ढाँचा उनकी चिर-परिचित खिलंदड़ शैली में है, और विवरण में सूक्ष्म भाव पिरोए गए हैं। यह एक यात्रा-संस्मरण न होकर एक मन में चल रहा भाष्य है। भिन्न संस्कृतियों के साम्य और द्वंद्व का चित्रण है। इसी कड़ी में उनका सफर एक खोई भारतीयता का सतही शोध भी करता नजर आता है। पुस्तक ‘भूतों के देश में: आईसलैंड’ की शृंखला रूप में ‘नास्तिकों के देश में: नीदरलैंड’ शीर्षक से लिखी गयी है, लेकिन दोनों की शैली में स्वाभाविक अंतर है। ख़ास कर नीदरलैंड की गांजा संस्कृति और वेश्यावृत्ति पर लेखन नवीनता लिए है। इन विषयों पर अनुभव जीवंत रूप से दर्शाए गए हैं। वहीं दूसरी ओर, नीदरलैंड की नास्तिकता पर एक अलग दृष्टिकोण से विवरण है। किताब की ख़ासियत यह भी है कि नीदरलैंड के भिन्न-भिन्न शहरों और नहरों से उनकी नाव गुजरती है। वह देश की राजधानी एम्सटरडम में सिमटे नहीं रहते, बल्कि एक देश को भटक-भटक कर टटोलते हैं। और इस भटकाव में लेखक के अपने पूर्वाग्रह और अंतर्द्वंद्व भी जुड़ जाते हैं। लेखक सूफ़ियाना हो चलता है, और बह कर किसी द्वीप पर जा बसता है। वान गॉग की आखिरी तस्वीर में खो जाता है। जब वह कुछ दिन गुजारता है- नास्तिकों के देश में।