Hindi Gazal aur Tevari
Publisher:
Rachnaye Fulfilled
Language:
Hindi
Pages:
82
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
164 mins
Book Description
तेवरी, कोरे रूप सौन्दर्य, व्यक्तिगत प्रेमालाप, थोथी कल्पनाशीलता, सामाजिक पलायनवादी दृष्टि से विमुख एक निश्चित अंत्यानुप्रासिक व्यवस्था से युक्त वह विधा है जिसमें मानवतावादी चिन्तन की सत्योन्मुखी संवेदनशीलता, शोषित के प्रति करुणा और शोषक के प्रति आक्रोश, असंतोष, विरोध और विद्रोह के रसात्मक बोध से सिक्त दिखलायी देती है। तेवरी की प्रतिबद्धता हमारे उन रागात्मक मूल्यों के साथ है, जो बर्जुआ और साम्राज्यवादी वर्ग द्वारा लगातार खण्डित किये जा रहे हैं। जबकि ग़ज़ल की स्थापना दैहिक भोग और प्रशस्ति को अभिव्यक्ति प्रदान करने के लिए की गयी। ग़ज़ल ने अपना विधागत स्वरूप अपने एक विशेष चरित्र-‘प्रेमिका से प्रेमपूर्ण बातचीत’ के संदर्भ में ग्रहण किया। किसी छन्द या बहर विशेष के आधार पर ग़ज़ल का स्वरूप न तो कभी पहले तय किया गया और न बाद में। ग़ज़ल को किसी एक निश्चित छन्द में ही कहे जाने की गुंजाइश मिली। अनेक बहरों में कही जाने वाली ग़ज़ल के शेरों, रदीफ-काफियों जैसी तकनीकी व्यवस्था का प्रचलन हिन्दी में आदिकाल से मौजूद है। रीतिकाल तो इस तकनीकी व्यवस्था से भरा हुआ पड़ा है। यह सुनिश्चित है कि ग़ज़ल को विधागत मान्यता उसकी एक विशेष भाव भंगिमा [ जो कि शृंगारपरक रही है ] के आधार पर ही मिली।