Caged . . . Memories Have Names
Author:
Gulzar, Sathya SaranPublisher:
Penguin IndiaLanguage:
EnglishCategory:
Biographies-and-autobiographies2 Reviews
Price: ₹ 497.17
₹
599
Unavailable
This is my Abbu…my father. I never used to call him Abbu … I love to call him by this name in my memories of him…always.
There’s so much ‘mamta’ in the word ma. More than in a mother herself. Just saying the word starts off a churning in the navel.
Intimate, subtle and deeply personal, Caged … Memories Have Names is probably Gulzar Saab’s first autobiography in verse.
Gulzar Saab ruminates and writes in rainbow colours. From Rumi to Pablo Neruda and Jibananda Das, among others, have coloured him in myriad of hues. With this he has painted the portraits of Birju Maharaj, Mehdi Hasan, Pancham, Asha Bhosle in words. Their palpable presence, thoughts and words are etched in Gulzar Saab’s existence. Then there are people, who have showered his life with love, affection with multitude of emotions: Meghna, Raakhee ji, Vishal Bhardwaj, and Javed Akhtar Saab, to name a few. And, words that remained unsaid to Abbu, search for his Ma within his own existence, they are the silken bonds of life. Gulzar Saab has ‘caged’ them deep inside his heart.
They are for now … and … forever.
ISBN: 9780670098231
Pages: 256
Avg Reading Time: 9 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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विधा चाहे कोई भी हो—गद्य, पद्य, नाटक, या निबन्ध—पैसोआ का प्रधान उद्देश्य हमेशा अपनी पहचान की खोज में भटकते मनुष्य की वेदना और द्वन्द्व को प्रकट करना रहता है। स्वभाव से अन्तर्मुखी पैसोआ किसी एक विचार और उसके विपरीत के बीच टकराते रहते थे। वे सभी सच्चाइयों की सापेक्षता पर भी ज़ोर देते थे। उनके सबसे पहले अनुवादक जोनाथन ग्रिफिन ने उन्हें ‘एक निष्पक्ष अन्तर्मुखी’ कहा है। वे ‘कला के लिए कला’ सिद्धान्त के समर्थक थे किन्तु साथ में इस बात में भी पूरा विश्वास करने लगे थे कि कलाकार को बिना आत्मनिर्भर हुए समकालीन विचारों को प्रकट करना चाहिए। इस तरह उनकी राय में सबसे बड़ा कलाकार वह होता है जो अपने सम्बन्धों को सबसे कम महत्त्व देता हो, अधिकतम साहित्यिक विधाओं में लिखता हो, और जिसके अनेक व्यक्तित्व हों।
फरनान्दो पैसोआ की मृत्यु के बाद उनके कमरे में लकड़ी की एक बड़ी-सी सन्दूक पाई गई, जो सीलबन्द लिफ़ाफ़ों से खचाखच भरी थी। इन लिफ़ाफ़ों में पैसोआ ने अपनी कविताएँ, नाटक, गद्य, सौन्दर्यशास्त्र पर लेख, साहित्यिक समालोचना, दर्शन पर निबन्ध तथा अप्रकाशित दैनिकी की मूल पांडुलिपियाँ जमा कर रखी थीं। इसी सामग्री से 1991 में एक पुस्तक तैयार की गई—‘दि बुक ऑव डिस्क्वाएट्यूड’। एक बेहद बेचैन, जीवन से विरक्त नौजवान के देखे हुए सपनों के वर्णन और उसके स्फुट विचारों का संग्रह। ‘एक बेचैन का रोज़नामचा’ इन्हीं अंशात्मक रचनाओं के प्रकाशित संग्रह में से संकलित किया गया है। अत्यधिक अस्त-व्यस्त रूप में पाई गई इन रचनाओं का नायक है बैरनार्दो सुआरैश जो फरनान्दो के बहत्तर नामों में से एक है। सुआरैश समय बिताने या जीवन से दूर भागने के लिए सपने नहीं देखता। वह सपने देखता है उस वस्तु को पाने के लिए जिसकी उसके जीवन में कमी है। इन सपनों की वास्तविकता से वह अपनी कला का निर्माण करता है जो उसका स्थायी आश्रय है, और जहाँ से परिस्थितियाँ अनुकूल होने पर वह फिर यथार्थ में लौटता है।
Padhi Padhi Ke Patthar Bhaya
- Author Name:
Nandkishore Nandan
- Book Type:

- Description: जाति-भेद आज भी हमारे समाज की एक गहरी खाई है जिसमें बतौर समाज और राष्ट्र हमारे देश की जाने कितनी सम्भावनाएँ गर्क होती रही हैं। आज़ादी के बाद संविधान की निगाह में हर नागरिक बराबर है, बावजूद इसके भेदभाव के जाने कितने रूप हमें शासित करते हैं। कई बार लगता है कि बिना ऊँच-नीच के, बिना किसी को छोटा या बड़ा देखे हुए हम अपने आप को चीन्ह ही नहीं पाते। और भी दुखद यह है कि शिक्षा भी अपने तमाम नैतिक आग्रहों के बावजूद हमारे भीतर से इन ग्रन्थियों को नहीं निकाल पाती। इस पुस्तक को पढ़ते हुए आप अनेक ऐसे प्रसंगों से गुज़रेंगे जहाँ उच्च शिक्षा-संस्थानों में जाति-भेद की जड़ों की गहराई देखकर हैरान रह जाना पड़ता है। इस आत्मकथा के लेखक को अपनी प्रतिभा और क्षमता के रहते हुए भी स्कूल स्तर से लेकर उच्च शिक्षा तक बार-बार अपनी जाति के कारण या तो अपने प्राप्य से वंचित होना पड़ा या वंचित करने का प्रयास किया गया। लेखक का मानना है कि व्यक्ति की प्रतिभा और उसका ज्ञान उसके मन और मस्तिष्क के व्यापक क्षितिज खोलने के साधन हैं लेकिन आज वे अधिकतर अनैतिक ही नहीं, संकीर्ण और निर्मम बनाने के जघन्य साधन बन गए हैं। वे कहते हैं कि भारतीय समाज की यही विसंगति उसकी सम्पूर्ण अर्जित ज्ञान-परम्परा को मानवीय व्यवहार में चरितार्थ न होने के कारण मानवता का उपहास बना देती है और आदर्श से उद्भासित उसकी सारी उक्तियाँ उसका मुँह चिढ़ाने लगती हैं। यह आत्मकथा हमें एक बार फिर इन विसंगतियों को विस्तार से देखने और समझने का अवसर देती है।
Amar Shaheed Chandrashekhar Azad
- Author Name:
Vishwanath Vaishampayan
- Book Type:

- Description: वैशम्पायन ने आज़ाद की एक मनुष्य, एक साथी और क्रान्तिकारी पार्टी के सुयोग्य सेनापति की छवि को विस्तार देते हुए उनके सम्पूर्ण क्रान्तिकारी योगदान के सार्थक मूल्यांकन के साथ ही आज़ाद के अन्तिम दिनों में पार्टी की स्थिति, कुछेक साथियों की गद्दारी और आज़ाद की शहादत के लिए ज़िम्मेदार तत्त्वों का पर्दाफाश किया है। अपनी पुस्तक में वैशम्पायन जी बहुत निर्भीकता से सारी बातें कह पाए हैं। उनके पास तथ्य हैं और तर्क भी। आज़ाद से उनकी निकटता इस कार्य को और भी आसान बना देती है। आज़ाद और वैशम्पायन के बीच सेनापति और सिपाही का रिश्ता है तो अग्रज और अनुज का भी। वे आज़ाद के सर्वाधिक विश्वस्त सहयोगी के रूप में हमें हर जगह खड़े दिखाई देते हैं। आज़ाद की शहादत के बाद यदि वैशम्पायन न लिखते तो आज़ाद के उस पूरे दौर पर एक निष्पक्ष और तर्कपूर्ण दृष्टि डालना हमारे लिए सम्भव न होता। एक गुप्त क्रान्तिकारी पार्टी के संकट, पार्टी का वैचारिक आधार, जनता से उसका जुड़ाव, केन्द्रीय समिति के सदस्यों का टूटना और दूर होना तथा आज़ाद के अन्तिम दिनों में पार्टी की संगठनात्मक स्थिति जैसे गम्भीर मुद्दों पर वैशम्पायन जी ने बहुत खरेपन के साथ कहा है। वे स्वयं भी एक क्रान्तिकारी की कसौटी पर सच्चे उतरे हैं। आज़ाद के साथ किसी भी कठिन परीक्षा में वे कभी अनुत्तीर्ण नहीं हुए। आज़ाद को खोकर वैशम्पायन ने कितना अकेलापन महसूस किया, इसे उनकी इस कृति में साफ़-साफ़ पढ़ा जा सकता है। आज़ाद-युग पर वैशम्पायन जी की यह अत्यन्त विचारोत्तेजक कृति है जो आज़ाद की तस्वीर पर पड़ी धूल को हटाकर उनके क्रान्तिकारित्व को सामने लाने का ऐतिहासिक दायित्व पूरा करती है। —सुधीर विद्यार्थी
Hashiye Ki Ibaraten
- Author Name:
Chandrakanta
- Book Type:

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Description:
चन्द्रकान्ता की कृतियाँ जहाँ सामयिक व्यवस्था के विद्रूपों एवं स्त्री-विमर्श की जटिलताओं की तहें खोलती हैं, वहीं सम्बन्धों के विघटन और मनुष्य के यांत्रिक होते जाने की विडम्बनाओं के बावजूद मूल्यों और विश्वासों की सार्थकता को नए आयाम देती हैं।
कश्मीर पर तीन महत्त्वपूर्ण उपन्यास लिखने के बावजूद चन्द्रकान्ता का लेखन समय के ज्वलन्त प्रश्नों एवं वृहत्तर मानवी सरोकारों से जुड़ा है।
प्रस्तुत है, स्त्रियों की सोच, आकांक्षाओं, स्वप्नों और संघर्षों की सच्चाइयों से साक्षात्कार करवानेवाली चन्द्रकान्ता की सद्य:प्रकाशित पुस्तक : ‘हाशिए की इबारतें’। अपने आत्मकथात्मक संस्मरणों के बहाने चन्द्रकान्ता ने स्त्री-मन के भीतर रसायन को खँगाला है। वहाँ अगर अँधेरे तहख़ाने हैं, तो रोशनी के गवाक्ष भी हैं; चाहों का हिलोरता सागर भी है और प्यास से हाँफता रेगिस्तान भी।
बकौल लेखिका : “मैंने इन संस्मरणों में स्त्री-समीक्षा नहीं की है, स्त्री-जीवन की भौतिकी, भीतरी कैमिस्ट्री की दख़लन्दाज़ी से बने गुट्ठिल व्यक्तित्व की कुछ गुत्थियों को खोलने की चेष्टा की है। बेटी, माँ, बहन, पत्नी, दादी, नानी के रोल निभाती स्त्री की सोच, आकांक्षाओं और स्वप्नों में सेंध लगाकर जानना चाहा है कि कई दशकों को पीछे ठेलते, प्रगति के तमाम सोपान पार करने के बाद, स्त्री से जुड़ी परिवर्तनकारी रीति-नीतियों और पुरुष वर्चस्व के अहम् पूरित सोच में कितना कुछ सार्थक बदलाव आ पाया है। घर-परिवार की धुरी स्त्री क्यों केन्द्र में क़दम जमाने से पहले ही बार-बार हाशिए पर धकेल दी जाती है? भूमंडलीकरण के इस दौर में भी क्या स्त्री के लिए कसाईघर मौजूद नहीं, जहाँ ख़ामोश, अपढ़ और बोलनेवाली तेज़-तर्रार, दोनों मिज़ाज की स्त्रियाँ, गाहे-बगाहे शहीद की जाती हैं?”
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