Mukti (Bandhan ko Bandhan to Jano)
Author:
Acharya PrashantPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
HindiCategory:
Academics-and-references0 Reviews
Price: ₹ 400
₹
500
Available
मानव मन में अगर कोई सबसे आकर्षक शब्द रहा है तो वह है 'मुक्ति'। प्रतिपल हम स्वयं को किसी-न-किसी बंधन में पाते हैं, और वहीं से हमारी मुक्ति की तलाश शुरू होती है।
अकसर अपने बंधनों को खोजने पर हम पाते हैं कि वे बाहरी हैं, इसलिए हमारी मुक्ति की तलाश भी बाहरी ही होती है। यह तलाश, कहने की आवश्यकता नहीं, अपूर्ण ही रह जाती है। आचार्य प्रशांत कहते हैं कि बाह्य बंधनों से तो हमें मुक्ति चाहिए ही, परंतु आंतरिक बंधनों एवं कमज़ोरियों से मुक्ति और ज़्यादा आवश्यक है। हम जन्म से ही स्वयं को बद्ध पाते हैं; ऐसे में हमारा एकमात्र उद्देश्य होना चाहिए—अपनी बेडिय़ों को काटना।
भ्रमित जीवन जीना ही बंधन है और विवेकपूर्वक सत्य का साहसिक चुनाव करना ही मुक्ति है। यह चुनाव हमें ही करना है तो स्वयं को एक मौका दें। स्वयं को असहाय और कमज़ोर मानकर बंधनों के साथ जीते रहने में कोई समझदारी नहीं। आपका स्वभाव है मुक्ति। अगर आप भी मुक्त गगन में उन्मुक्त उड़ान भरने के इच्छुक हैं, तो यह पुस्तक आपके लिए है।
ISBN: 9789355210616
Pages: 368
Avg Reading Time: 12 hrs
Age: 18+
Country of Origin: India
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व्रत, पर्व और त्योहार यद्यपि ये तीनों उत्सव के भिन्न-भिन्न रूप हैं तथापि किसी-न-किसी रूप में इनमें परस्पर विचित्र समानता पायी जाती है। व्रत का विधान बहुधा आध्यात्मिक अथवा मानसिक शक्ति की प्राप्ति के लिए, चित्त अथवा आत्मा की शुद्धि के लिए, संकल्प-शक्ति की दृढ़ता के लिए, ईश्वर की भक्ति और श्रद्धा के विकास के लिए, वातावरण की पवित्रता के लिए, दूसरों पर अपने प्रभाव जमाने के लिए, अपने विचारों को उच्च एवं परिष्कृत करने के लिए तथा प्रकारान्तर से स्वास्थ्य की प्रगति के लिए किया जाता है। यद्यपि भारतीय विचारधारा में व्रत का सामान्य अर्थ व्रत अथवा उपवास ही है, तथापि कुछ ऐसे व्रत हैं जिनमें उपवास का स्थान गौण है और चित्त-शुद्धि अथवा आत्म-परिष्कृत का स्थान मुख्य है। पर्व किसी मुख्य तिथि अथवा ज्योतिष के अनुसार ग्रहों आदि के संयोग का ही दूसरा नाम है, जो किसी निर्दिष्ट समय पर आता है। पर्व का बीच-बीच में निर्दिष्ट अवधि पर आते रहते हैं जैसे कुम्भ पर्व आदि। आकाश के नक्षत्रों और ग्रहों की स्थिति के अनुसार इन पर्वों का धरती के जीवन पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है। त्योहार एक सामान्य शब्द है। आजकल इसका प्रयोग व्रत और पर्व के लिए भी होने लगा है, किन्तु इसका तात्पर्य वस्तुत: लौकिक उत्सवों एवं समारोहों की तिथि से ही अधिक समीप है जैसे दशहरा, होली आदि।
व्रत दो प्रकार के होते हैं, ‘काम्य’ और ‘नित्य’। काम्य उन्हें कहते हैं जो किसी विशेष कामना को लेकर किये जाते हैं और नित्य वे हैं, जिनमें किसी कामना का समावेश नहीं होता, वरन् जो भक्ति और प्रेम के कारण आध्यात्मिक प्रेरणा से किये जाते हैं। निष्काम अथवा नि:स्वार्थ व्रत का ही स्थान ऊँचा होता है।
व्रत का सामान्य अर्थ आज ‘उपवास’ हो गया है। उपवास शब्द का अर्थ है दुर्गुणों एवं दोषों से बचकर आत्मा अथवा गुणों के साथ वास अर्थात् निवास। इन व्रतों अथवा पर्वों में हमारे देश के भिन्न-भिन्न मतावलम्बी लोगों के लिए अपनी-अपनी कुल-परम्परागत मान्यता के अनुसार चलने की पूरी सुविधाएँ प्रदान की गयी हैं। एक धर्म अथवा सम्प्रदाय के देवता का अन्य धर्म अथवा सम्प्रदाय में बड़ी उदारता एवं सहानुभूति के साथ चित्रण किया गया है। सनातन हिन्दू धर्म में तो इस व्यापक दृष्टिकोण का पदे-पदे परिचय मिलता है। भगवान् विष्णु के चौबीसों अवतारों में जैन धर्म के आदि प्रवर्तक भगवान् ऋषभदेव तथा बुद्ध धर्म के प्रतिष्ठापक भगवान् गौतम बुद्ध का भी गिनाया गया है और इनकी जयन्तियों तथा पुण्यकथाओं को सुनने-सुनाने का बड़ा माहात्म्य वर्णित है।
सनातनी हिन्दुओं के मुख्य त्योहारों होली, दीवाली, विजयादशमी, वसन्तपंचमी, नागपंचमी आदि त्योहार तो बौद्ध, जैन आदि मतों में भी सनातन धर्म के समान ही समादृत और महत्त्वपूर्ण हैं। कुछ अन्य त्योहार तो ऐसे भी हैं जो सनातन धर्म में किसी अन्य कारण से महत्त्व रखते हैं और बौद्ध तथा जैन धर्म में किसी अन्य कारण से। किन्तु हिन्दुओं के सभी मतानुयायियों में उनकी विशेषता अखण्डित है। कार्तिकी पूर्णिमा, मार्गशीर्ष शुक्ला एकादशी, अक्षय तृतीया, अनन्त चतुर्दशी आदि व्रतों अथवा पर्वों का सनातन हिन्दू धर्म तथा बौद्ध एवं जैन धर्मों में समान महत्त्व है, किन्तु कारण भिन्न-भिन्न दिये गये हैं।
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