
The Orioles are Back and Other Stories
Author:
ChandrakantaPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
EnglishCategory:
Short-story-collections0 Reviews
Price: ₹ 360
₹
450
Unavailable
Discover the Depths of Humanism and Societal Insight with Chandrakanta's Compelling Stories
Dive into the rich and multifaceted world of eminent writer Chandrakanta, whose work masterfully explores socio-economic and political landscapes and their profound impact on human life. Known for her focus on humanism and enduring value systems, Chandrakanta's narratives provide a poignant examination of the struggles and triumphs of women and the less privileged in a rapidly globalizing world.
In this collection, including the acclaimed stories "The Orioles are Back" and "Abbu had said," Chandrakanta captures the essence of human values amidst broken relationships, identity crises, and the stark contrasts between inner dreams and harsh external realities. Each story is a vibrant tapestry of society's different shades and colors, reflecting the intricate balance between hope and adversity.
Perfect for readers who appreciate literary works that offer both emotional depth and societal critique, Chandrakanta's stories will leave you reflecting on the intricate connections between personal identity and broader social systems.
The effects and repercussions caused by militancy are portrayed in stories such as "The black Snow", "The Voice", "The dispossessed", and "Gasha Koul".
Old age issues in changing times are philosophically dealt with in "Exile".
"The dream of roses" and "Rights for the departed" hold up a mirror to corruption in society.
"Amidst wrong people" is based on the hopes, empathy, and dreams of marginalized people.
"Lark in the heart" is based on the aspirations and the wish to connect with people dispassionately.
The remaining stories, such as "Thresh hold of justice", show the plight and sufferings of women suppressed under the societal superstitions.
This collection of her stories has different shades and colors of society.
ISBN: 9789355620712
Pages: 184
Avg Reading Time: 6 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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Description:
सुपरिचित कवि, ग़ज़लगो तथा सम्पादक ध्रुव गुप्त का कहानी के क्षेत्र में आगमन एक सुखद घटना है। ‘मित्र’ में प्रकाशित उनकी कहानी ‘नाच’ ने विषय के चयन, कथा गठन के कौशल, कथा की ज़मीनी पकड़ और भाषा की जीवन्तता के कारण मुझे आश्चर्यचकित किया था। इस दौरान कुछ अन्य पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित उनकी कहानियाँ भी नई ज़मीन तोड़ती हुई प्रतीत हुईं।
‘मुठभेड़’ ध्रुव गुप्त का पहला कहानी-संग्रह है, लेकिन हाथ के नएपन का एहसास इन कहानियों में कहीं नहीं। पेशे से पुलिस अधिकारी ध्रुव गुप्त ने अपने अनुभव संसार की प्रखरता को अपने कवि मन की संवेदनशीलता और काव्यात्मक भाषा में ढालकर अपनी कहानियों को निखारा और एक नया स्वाद प्रदान किया है। इन कहानियों में हमारे समय का यथार्थ पूरे तीखेपन के साथ व्यक्त हुआ है। संग्रह की प्रायः सभी कहानियाँ हमारे मन में एक टीस पैदा करती हैं। व्यवस्था की बदतरी और सामाजिक विकृतियों के प्रति हमें सजग बनाती हैं। हमें सोचने को बाध्य करती हैं।
इस संग्रह की पाँच कहानियाँ पुलिस ज़मीन की कहानियाँ हैं जो कथाकार का अनुभव जगत भी है। ‘मुठभेड़’ में जब माहौल की विसंगतियाँ एक संवेदनशील पुलिस अधिकारी को अमानवीय बनाती हैं तो सचमुच मन कचोट कर रह जाता है। यह बाहरी संघर्ष की ही नहीं, आन्तरिक संघर्ष की भी कथा है। इसी तरह ‘हत्यारा’ और ‘कांड’ कानूनी दाव-पेच के कारण न्याय न दिला पाने की एक संवेदनशील पुलिस अधिकारी की आन्तरिक पीड़ा को बेहद मर्मस्पर्शी तरीक़े से व्यक्त करती हैं।
‘समय और समाज का सच तथा संवेदना का नया आख्यान’ मेरी समझ से कहानियों की कसौटी है। ध्रुव गुप्त की कहानियाँ निःसन्देह इस कसौटी पर खरी उतरती हैं।
—मिथिलेश्वर
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