Hashiye Par

Hashiye Par

Authors(s):

K. D. Singh

Language:

Hindi

Pages:

112

Country of Origin:

India

Age Range:

18-100

Average Reading Time

224 mins

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Book Description

व्यंग्य का उद्देश्य यह होता है कि आप अपनी ख़ामियों को जान भी लें<strong>, </strong>और आहत भी महसूस करें। कई बार करुणा भी पैदा करता है।</p> <p>इस पुस्तक में संकलित व्यंग्य-रचनाएँ हल्की चोट मारकर गहरे और दीर्घकालीन प्रभाव को सम्भव करती हैं। शायद इसीलिए व्यंग्यकार ने अधिकांशत: यहाँ ऐसे विषयों को चुना है जो हमारे सामाजिक जीवन में परम्पराओं के रूप में निहित हैं। मसलन धार्मिक कर्मकांड और आज के युग में उनकी धन-केन्द्रीयता। पहले ही व्यंग्य<strong>, </strong>‘गंगे तव दर्शनात् मुक्ति’ में गंगा-स्नान और उसके इर्द-गिर्द होनेवाली अन्य धार्मिक क्रियाओं के बहाने होनेवाली लूट को दिलचस्प ढंग से दिखाया गया है। इसी तरह ‘धर्मोपदेश:’<strong>, </strong>‘जिन्नबबूता की भारत यात्रा’ और अन्य रचनाओं में प्रशासन<strong>, </strong>राजनीति<strong>, </strong>पुलिस-तंत्र आदि को केन्द्र में रखते हुए हमारे सामाजिक व्यवहार की बारीक पड़ताल की गई है।</p> <p>इन व्यंग्य रचनाओं में कहीं कहानी की तरह<strong>, </strong>तो कहीं सीधी टिप्पणियों और कहीं रूपक के माध्यम से हास्य की रचना की गई है<strong>, </strong>लेकिन लेखक के सरोकार कहीं भी ओझल नहीं होते। हर साहित्यिक प्रयास का अन्तिम लक्ष्य जीवन जैसा है<strong>, </strong>उसे उससे बेहतर बनाना होता है<strong>, </strong>इस पुस्तक में शामिल व्यंग्य भी इस लक्ष्य से नहीं भटकते। एक अंश देखें<strong>, </strong>“शाम को एकान्त में बैठकर जिवनू ने लिखा—‘प्रान्त का सामाजिक जन-जीवन धर्म और अध्यात्म से परिपूर्ण है।...इस कार्य में युवाओं का योगदान महत्त्वपूर्ण है। देवी-पूजा के नौ दिन अधार्मिक प्रवृत्ति के लोगों को दंडित करने का प्रचलन है। युवा नागरि‍कगण मद्य-भाँग-धतूरा आदि के नशे में उन्मत्त होकर अधार्मिक वर्ग की महिलाओं का स्तन-मर्दन करते तथा पुरुषों की माँ -बहन को विभिन्न पशुओं के साथ यौन-क्रियाओं के लिए आमंत्रित करते चला करते हैं।’’</p> <p> 

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