
Dharamguru
Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
107
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
214 mins
Book Description
यह नाटक उच्चस्तरीय बौद्धिक रचना का प्रमाण देता है। नाटककार ने पूरे धार्मिक व्यवहार पर जो कटाक्ष किया है, वह अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है। संवादों, घटनाओं तथा कार्यव्यापार के माध्यम से उभारा गया नाटकीय टकराव शिखर को छूता है। इस नाटक ‘धर्मगुरु’ की प्रस्तुति से पंजाबी नाटक नए क्षितिजों के द्वार खोलता है...।</p> <p>—गुरुशरण सिंह (नाटककार एवं निर्देशक)</p> <p>स्वराजबीर के नाटक पहली बार पंजाबी नाटक को उस नाट्य विधिविधान के साथ जोड़ते हैं जो भारतीय नाट्य रूप से जुड़ा हुआ है। यही वजह है कि ये नाटक अग्रदूत बनकर पंजाबी नाटक में पैदा हुई जड़ता को तोड़ते हैं। नाट्य-विधि के रूप में ही इनमें कविता और गद्य अन्तर्सम्बन्धित हैं।</p> <p>—डॉ. सुतिंदर सिंह नूर</p> <p>स्वराजबीर का नाटक ‘धर्मगुरु’ वर्तमान समय पर एक बड़ी टिप्पणी है जो धर्म और राजनीति की साँठ-गाँठ के माध्यम से समाज के समूचे अस्तित्व को अपनी गिरफ़्त में लेने के लिए सक्रिय है। इस समय इसकी प्रस्तुति एक साहसिक क़दम है।</p> <p>—‘नवांजमाना’ (दैनिक, जालंधर)</p> <p>यह नाटक ‘धर्मगुरु’ आज के दौर में फैले धार्मिक कठमुल्लापन और सामाजिक आपाधापी पर तीखा व्यंग्य है। तथाकथित धार्मिक नेताओं की मनमानियों और समाज की बेबसी की त्रासदी के दौर में इस नाटक का मंचन बुद्धिजीवियों और कलाकारों की बुलन्द आवाज़ और सच्चाई का प्रतीक है।</p> <p>—‘अजीत’ (दैनिक, जालंधर)