
Striyon Ki Paradhinta
Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
132
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
264 mins
Book Description
<strong>‘</strong>स्त्रियों की पराधीनता’ पुस्तक में मिल पुरुष-वर्चस्ववाद की स्वीकार्यता के आधार के तौर पर काम करनेवाली सभी प्रस्तरीकृत मान्यताओं-संस्कारों-रूढ़ियों को, और स्थापित कानूनों को तर्कों के ज़रिए प्रश्नचिह्नों के कठघरे में खड़ा करते हैं। निजी सम्पत्ति और असमानतापूर्ण वर्गीय संरचना के इतिहास के साथ सम्बन्ध नहीं जोड़ पाने के बावजूद, मिल ने परिवार और विवाह की संस्थाओं के स्त्री-उत्पीड़क, अनैतिक चरित्र के ऊपर से रागात्मकता के आवरण को नोच फेंका है और उन नैतिक मान्यताओं की पवित्रता का रंग-रोगन भी खुरच डाला है जो सिर्फ़ स्त्रियों से ही समस्त एकनिष्ठता, सेवा और समर्पण की माँग करती हैं और पुरुषों को उड़ने के लिए लीला-विलास का अनन्त आकाश मुहैया कराती हैं।</p> <p>पुरुष-वर्चस्ववाद की सामाजिक-वैधिक रूप से मान्यता प्राप्त सत्ता को मिल ने मनुष्य की स्थिति में सुधार की राह की सबसे बड़ी बाधा बताते हुए स्त्री-पुरुष सम्बन्धों में पूर्ण समानता की तरफ़दारी की है। स्त्री-पुरुष समानता के विरोध में जो उपादान काम करते हैं, उनमें मिल प्रचलित भावनाओं को प्रमुख स्थान देते हुए उनके विरुद्ध तर्क करते हैं। वे बताते हैं कि (उन्नीसवीं शताब्दी में) समाज में आम तौर पर लोग स्वतंत्रता और न्याय की तर्कबुद्धिसंगत अवधारणाओें को आत्मसात् कर चुके हैं लेकिन स्त्री-पुरुष सम्बन्धों के सन्दर्भ में उनकी यह धारणा है कि शासन करने, निर्णय लेने और आदेश देने की स्वाभाविक क्षमता पुरुष में ही है। स्त्री-अधीनस्थता की समूची सामाजिक व्यवस्था एकांगी अनुभव व सिद्धान्त पर आधारित है।</p> <p>मिल के अनुसार, प्राचीन काल में बहुत-से स्त्री-पुरुष दास थे। फिर दास-प्रथा के औचित्य पर प्रश्न उठने लगे और धीरे-धीरे यह प्रथा समाप्त हो गई लेकिन स्त्रियों की दासता धीरे-धीरे एक क़िस्म की निर्भरता में तब्दील हो गई। मिल स्त्री की निर्भरता को पुरातन दासता की ही निरन्तरता मानते हैं जिस पर तमाम सुधारों के रंग-रोगन के बाद भी पुरानी निर्दयता के चिह्न अभी मौजूद हैं और आज भी स्त्री-पुरुष असमानता के मूल में ‘ताक़त’ का वही आदिम नियम है जिसके तहत ताक़तवर सब कुछ हथिया लेता है।</p> <p>—सम्पादकीय से,