
Kavita Laut Padi
Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
182
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
364 mins
Book Description
कैलाश गौतम एकदम नए ढंग की भाषा लेकर आए हैं। ऐसी भाषा हिन्दी के इस दौर में कहीं नहीं दिखती। धूमिल के पास भी ऐसी भाषा नहीं थी।</p> <p>—नामवर सिंह</p> <p>कैलाश गौतम की कहानियों का प्रशंसक रहा हूँ। इनकी अनेक रचनाओं का लोकधर्मी रंग और ग्राम्य संस्कृति का टटकापन इन्हें एक ऐसी भंगिमा देता है<strong>, </strong>जो आसानी से इस विधा के दूसरे रचनाकारों में नहीं मिलती<strong>?</strong></p> <p>—श्रीलाल शुक्ल</p> <p>कैलाश गौतम जैसे प्रथम कोटि के गीतकार निर्भय होकर अपने जीवन परिवेश<strong>,</strong> पारिवारिकता सबको अपने काव्य में मूर्त करने में लगे हैं। कैलाश गौतम जैसे वास्तविक कवि अपनी संस्कृति से एक क्षण को भी पृथक् नहीं होते। जयदेव<strong>, </strong>विद्यापति<strong>, </strong>निराला के बाद ये कविताएँ ऐसी रचनात्मक बयार हैं<strong>, </strong>जिनका स्वागत किया ही जाना चाहिए।</p> <p>—श्रीनरेश मेहता</p> <p>कैलाश गौतम की रचनाओं का रंग बिलकुल अनोखा है<strong>,</strong> कितनी सादगी से तन-मन की बारीक संवेदनाओं को उकेर देते हैं। इतनी मीठी पारदर्शी संवेदनाएँ ऐसी सौन्दर्य चेतना जाने क्या-क्या लौटा जाती हैं<strong>, </strong>वह सब जो तीस-पैंतीस बरस से हिन्दी कविता में खोया हुआ था।</p> <p>—धर्मवीर भारती</p> <p>कैलाश गौतम जमात से बाहर के कवि हैं। इनकी कविताओं में ताज़गी है<strong>, </strong>उबाऊपन नहीं। वे लोकमन के कवि हैं।</p> <p>—दूधनाथ सिंह