
Kachhua Ki Tarha
Publisher:
Rajkamal Prakashan Samuh
Language:
Hindi
Pages:
120
Country of Origin:
India
Age Range:
18-100
Average Reading Time
240 mins
Book Description
राजेन्द्र दानी की कहानियों का यह चौथा संग्रह है। अपनी इस लम्बी रचना-यात्रा में वे आज की प्रतिष्ठित प्रायोजन कला से सायास दूर रहे हैं। शम्भु गुप्त ने ‘पहल’ पुस्तिका में उनकी कहानियों पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए लिखा है : “अपने बदलते हुए सम-काल और उसके समानान्तर एक नए शिल्प की तलाश उनके कथा-श्रम की पहचान है। संश्लिष्ट या कि योगात्मक यथार्थ को अधिक से अधिक स्पष्ट और अयोगात्मक बना देने में वे निरन्तर सफलता हासिल करते देखे जा सकते हैं। इस कार्य में उनकी कहानियाँ अनेक कथा-रूढ़ियों, कथा-शिल्प के पुराने ढर्रे को बहुत ही सादगी और इत्मीनान के साथ तोड़ती और उलाँघती चलती हैं। यह तोड़ना या उलाँघना, यहाँ न तो तोड़ने या उलाँघने के लिए है और न सायास कोई नयापन लाने के लिए। यहाँ सब कुछ बहुत ही नामालूम तरीक़े से और अपनी संरचना को अधिक से अधिक पारदर्शी बनाने, बनाते चलने की एक स्वाभाविक प्रक्रिया के तहत सम्पन्न होता है।...वे आम प्रचलित और बहुलिखित विषयों से अलग कुछ नए और ज़्यादा गहरे विषयों से अपनी कहानियों में उलझते हैं। सतह पर दिखनेवाले बहुत सारे प्रसंग और मुद्दे उनकी कहानियों के विषय नहीं बनते। राजेन्द्र दानी भारतीय समाज के समकालीन संक्रमण के सचेत कथाकार हैं, यदि यह कहा जाए, तो यह उनकी सबसे अलग और सही पहचान होगी। यह पहचान उनकी इधर की कुछ ताज़ा कहानियों से और ज़्यादा पुख़्ता होती है।”</p> <p>उपरोक्त कथन के सन्दर्भ में संग्रह की ‘कछुए की तरह’, ‘इस सदी के अन्त में एक सपना’, ‘ठंडी तेज़ रफ़्तार’, ‘विस्थापित’ और ‘एक झूठे की मौत’ जैसी कहानियाँ अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं, जो अपनी ख़ास भंगिमा और कथ्य–विधान के नाते जानी जाती हैं। संग्रह में शामिल अन्य कहानियों को भी नज़रअन्दाज़ नहीं किया जा सकता, उनकी अपनी अलग मौलिक दुनिया है।