Bhartiya Lokparampara Mein Dahod

Bhartiya Lokparampara Mein Dahod

Authors(s):

Uday Narayan Rai

Language:

Hindi

Pages:

55

Country of Origin:

India

Age Range:

18-100

Average Reading Time

110 mins

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Book Description

प्राचीन भारतीय इतिहास, साहित्य एवं कला से ज्ञात होता है कि ‘दोहद’ ‘स्‍त्री एवं वृक्ष’ अभिप्राय (मोटिफ़) का एक लोकप्रिय प्रकार था। संस्कृत कवियों, ग्रन्थकारों एवं कोशकारों की इस शब्द की व्याख्या के अनुसार यह वृक्ष-विशेष की अभिलाषा का द्योतक था, जो इसकी पूर्ति की अपेक्षा स्‍त्री के क्रिया-विशेष से रखता था। प्रचलित लोकपरम्परा एवं सामान्य जन-अवधारणाओं को लक्ष्य में रखकर उन्होंने इसे ऐसे द्रव या द्रव्य का फूँक कहा है, जो वृक्ष, पौधों एवं लतादि में अकाल पुष्प-प्रसव की औषधि का कारक एवं शक्ति सिद्ध होता था। इनकी पृथक् आकांक्षाओं के रूप में प्रियंगु-दोहद, बकुल-दोहद, अशोक-दोहद, कुरबक-दोहद, कर्णिकार-दोहद एवं नवनालिका-दोहद आदि शब्दों का प्रचुर सन्दर्भ भारतीय साहित्य की उल्लेखनीय विशेषता है।</p> <p>वृक्ष-दोहद (अभिलाषा) के समानार्थी प्रतीकात्मक उच्चित्रण विभिन्न कालों के कला-केन्द्रों के शिल्पांकनों में द्रष्टव्य हैं। आपातत: शृंगारिक अभिप्राय के बोधक वृक्ष-विषयक नाना दोहद-प्रकार कल्पित लगते हैं, पर विचारणीय है कि उनका निकट सम्बन्ध प्रचलित लोक-परम्परा एवं सामाजिक रीति-प्रथाओं से था, जिनकी संपृक्तता नारी जनों का उद्यान, उपवन एवं वाटिकाओं के साथ प्रेम था। इसका प्रतिबिम्ब वैदिक साहित्य, ‘महाभारत’, ‘रामायण’, संस्कृत प्राकृत काव्यों, नाटकों, रीतिकालीन साहित्य एवं प्रचलित लोकगीतों में भी प्राप्य है। तत्सम्बन्धी पाश्चात्य अवधारणाओं का परिशीलन तथा मिथक एवं यथार्थ को विश्लेषित करनेवाले तत्त्वों की मीमांसा भी दोहद-विषयक इस अध्ययन का लक्ष्य रहा है।</p> <p>साथ ही, प्रसंगत: अरण्य-संरक्षण एवं लोकमंगल की अन्तर्निहित भावना का अन्योन्य सम्बन्ध तथा निर्वनीकरण-प्रक्रिया एवं वृक्ष-तक्षण की भर्त्सना पर लाक्षणिक ढंग से प्रकाश डालनेवाले प्रस्तुत प्रबन्ध के विविध अध्यायों में सटीक चित्रों सहित इस ललित कला-मुद्रा का विशद एवं एकत्र ऐतिहासिक परिचय रोचक एवं सारगर्भित भाषा में मुखरित है।

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