Andhere Mein : Antastal Ka Poora Viplav
Author:
Nirmala JainPublisher:
Rajkamal Prakashan SamuhLanguage:
HindiCategory:
General-non-fiction0 Reviews
Price: ₹ 396
₹
495
Available
‘अँधेरे में’ उत्तरशती की सबसे महत्त्वपूर्ण और शायद सबसे विवादास्पद कविता है। विवाद भिन्न रुचि और विचारधारा वालों के बीच ही नहीं, समानधर्मा आलोचकों के बीच भी है। यह तथ्य कविता की सम्भावनाशीलता का प्रमाण है। यह भी सही है कि मुक्तिबोध के जीवन-काल में इस कविता को ख़ुद उनसे सुना तो कइयों ने होगा, लेकिन इसे सराहा उनकी मृत्यु के बाद ही गया। इस विलम्ब का कारण उपेक्षा या उदासीनता नहीं, बल्कि ऐतिहासिकता है।
अपने समय का अतिक्रमण हर कालजयी रचना में होता है। लेकिन आनेवाले समय के इस कदर साथ चलनेवाली रचनाओं की संख्या बहुत नहीं होती। इस दृष्टि से देखने पर यह बात हैरत में डालनेवाली है कि अपने सारे जटिल अर्थ-विन्यास और अपारदर्शी शिल्प के बावजूद इस कविता के पाठकों की संख्या उत्तरोत्तर बढ़ती गई है।
कविता के पाठक-आलोचकों ने तरह-तरह से इस बात को दोहराया है कि मध्यवर्ग के सुविधाजीवी, समझौतावादी और आदर्शजीवी मन का संघर्ष ही ‘अँधेरे में’ की काव्य-वस्तु है।
इस पुस्तक में ख्यात हिन्दी आलोचक निर्मला जैन ने ‘अँधेरे में’ पर आधारित आलोचनात्मक आलेखों को संकलित किया है। ये आलेख इस कालजयी कविता की विभिन्न पक्षों से व्याख्या करते हैं।
ISBN: 9788183619936
Pages: 155
Avg Reading Time: 5 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
Recommended For You
Hum Bheed Hain
- Author Name:
Raghuvansh
- Book Type:

-
Description:
रघुवंश ने 'आधुनिकता’ को केवल 'व्यक्ति’ की विशिष्टता के रूप में नहीं, बल्कि अपने समाज के गतिशील होने की सांस्कृतिक आकांक्षा के वैशिष्ट्य के रूप में समझने की चेष्टा की। दरअसल वे सांस्कृतिक चिन्तक थे। संस्कृति को परम्परा की रूढ़ियों से मुक्त करके उन्होंने अपने समय के समाज को विभिन्न समस्याओं से सन्दर्भित किया। राजनीतिक, आर्थिक, शैक्षिक दृष्टि से भारतीय समाज के लिए क्या ग्राह्य है और किस रूप में ग्राह्य है, इसके विश्लेषण में पूर्वग्रह-रहित होकर रघुवंश जी ने समय-समय पर जो लेख-निबन्ध इत्यादि विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लिखे, उनका संकलन उनकी इस पुस्तक में किया गया है। राजनीति, धर्म, शिक्षा और विकास के नए मॉडलों पर रघुवंश जी के क्या विचार थे, उनको जानने में इस पुस्तक की उपयोगिता असन्दिग्ध है।
रघुवंश ‘मनुष्य की सांस्कृतिक उपलब्धियों’ की कसौटी पर अपने समय और समाज की स्थितियों को परखने के हिमायती थे। इस पुस्तक में संकलित लेखों से यह भी पता चलता है कि उन्होंने अपने चिन्तन का फलक कितना व्यापक रखा। इसीलिए वे शिक्षा, राजनीतिक व्यवस्थाओं और साम्प्रदायिक संकटों को समझने और समझाने में निरन्तर संलग्न रहे।
यह पुस्तक 'हम भीड़ हैं’ हमें बताती है कि उनमें आधुनिकता और विकास का एक ऐसा स्वरूप पहचानने की व्याकुलता थी, जो काल की दृष्टि से 'नया’ हो और देश की दृष्टि से 'भारतीय’ हो। यही आकांक्षा रघुवंश जी को आचार्य नरेन्द्र देव, डॉ. लोहिया और जयप्रकाश नारायण जैसे चिन्तकों की ओर आकृष्ट करती रही।
Siddharth
- Author Name:
Harmann Hesse
- Book Type:

- Description: अपने विचारों में खोया हुआ सिद्धार्थ धीरे-धीरे आगे बढ़ता रहा। उसे यह महसूस हुआ कि अब सब कुछ पहले जैसा नहीं रह गया था। वह ख़ुद को परिपक्व महसूस कर रहा था। उसे एहसास हो रहा था कि अब उसके भीतर छिपा युवक कहीं पीछे छूट गया है और एक पुरुष ने उसके अंदर जन्म ले लिया है। उसे ऐसा लगा जैसे सर्प अपनी केंचुल को छोड़कर नई काया के साथ चल पड़ता है वैसे ही उसने भी अपने पुराने लबादे को त्याग दिया है, ऐसा अंश, जो उसके साथ उसके नवयौवन तक साथ रहा था। अब उसके भीतर किसी गुरु से सीखने की आकांक्षा भी मद्धिम हो चुकी थी, क्योंकि उसने अभी कुछ समय पहले ही अपने श्रेष्ठतम गुरु, एक पवित्र आत्मा को भी पीछे छोड़ दिया था। उसके उपदेशों को भी स्वीकार करने से उसने मना कर दिया था। अब वह, उसका चिंतन और उसका अब तक का अनुभव ही उसके साथ थे। विचारों में मग्न वह अपनी अलौकिक यात्रा पर चला जा रहा था। चलते-चलते उसने स्वयं से प्रश्न किया, “आख़िर वह क्या है, जो तुम अपने गुरु से, उसके उपदेशों से प्राप्त करना चाहते थे? परन्तु इतना सीखने और गुरुओं के सानिध्य में रहने के बाद भी तुम उसे प्राप्त नहीं कर सके।” --
Darshanshastra Aur Bhavishya
- Author Name:
Deviprasad Chattopadhyay
- Book Type:

- Description: Awating description for this book
Aadivasi : Vikas Se Visthapan
- Author Name:
Ramanika Gupta
- Book Type:

-
Description:
आदिवासियों का पलायन और विस्थापन सदियों से होता रहा है और ये आज भी जारी है। आदिवासियों के जंगलों, ज़मीनों, गाँवों, संसाधनों पर क़ब्ज़ा कर उन्हें दर-दर भटकने के लिए मजबूर करने के पीछे मुख्य कारण हमारी सरकारी व्यवस्था रही है। वे केवल अपने जंगलों, संसाधनों या गाँवों से ही बेदख़ल नहीं हुए बल्कि मूल्यों, नैतिक अवधारणाओं, जीवन-शैलियों, भाषाओं एवं संस्कृति से भी वे बेदख़ल कर दिए गए हैं।
हमारे मौलिक सिद्धान्तों के अन्तर्गत सभी को विकास का समान अधिकार है। लेकिन आज़ादी के बाद के पहले पाँच वर्षों में लगभग ढाई लाख लोगों में से 25 प्रतिशत आदिवासियों को मजबूरन विस्थापित होना पड़ा। विकास के नाम पर लाखों लोगों को अपनी रोज़ी-रोटी, काम-धंधों तथा ज़मीनों से हाथ धोना पड़ा। उनको मिलनेवाले मूलभूत अधिकार जो उनकी ज़मीनों से जुड़े थे, वे भी उन्हें प्राप्त नहीं हुए।
आदिवासियों के प्रति सरकार तथा तथाकथित मुख्यधारा के समाज के लोगों का नज़रिया कभी संतोषजनक नहीं रहा। आदिवासियों को सरकार द्वारा पुनर्वसित करने का प्रयास भी पूर्ण रूप से सार्थक नहीं हो सका। अन्ततः अपनी ही ज़मीनों व संसाधनों से विलग हुए आदिवासियों का जीवन मरणासन्न अवस्था में पहुँच गया।
21वीं सदी में पहुँचकर भी हमारे देश का आदिवासी समाज जहाँ विकास की बाट जोह रहा है। वहीं दूसरी तरफ़ सरकार की उदासीन नीतियों के कारण उनकी स्थिति ज्यों की त्यों ही है।
विकास के नाम पर छले जा रहे आदिवासियों के पलायन और विस्थापन आदि समस्याओं पर केन्द्रित यह पुस्तक समाज और सरकार के सम्मुख कई सवाल खड़े करती है।
Atal Yaaden
- Author Name:
Virendra Jain
- Book Type:

- Description: भारतरत्न अटल बिहारी वाजपेयी नाम पढ़ते ही स्मरण हो आता है कि वह ओजस्वी वक्ता थे, कविहृदय थे, उदारहृदय थे। आजीवन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबद्ध रहे। भारतीय राजनीति के पुरोधा रहे । जीवन के पाँच दशक सांसद के रूप में बिताए। जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक सदस्य रहे। जनता पार्टी की सरकार में विदेश मंत्री रहे और तीन बार प्रधानमंत्री रहे । इतना ही नहीं, उनके जीवन से जुड़ी अन्य कई रोचक जानकारियाँ भी हमारी स्मृति में फिर से जीवंत हो उठती हैं। इस आख्यान के केंद्रीय चरितनायक वही अटल बिहारी वाजपेयी हैं, फिर भी वह वही नहीं हैं। यह आख्यान अपने पाठकों को एक ऐसे अटलजी से परिचित होने का अवसर देता है, जो उनके लिए सर्वथा अपरिचित हैं। अटलजी से जुड़ी स्मृतियाँ ही इस आख्यानपरक संस्मरणात्मक पुस्तक में लिपिबद्ध की गई हैं। इस आख्यान के अटलजी पुस्तक की प्रशंसा के लिए अपरिचित लेखक को फोन पर बधाई देने में संकोच नहीं करते। वैचारिक साम्य न रखनेवाले लेखक, संपादक के व्यक्तित्व और कृतित्व की मुक्तकंठ से प्रशंसा करने के लिए श्रोता रूप में समारोह में पहुँचकर बधाई देने में संकोच नहीं करते । कवि के रूप में अपनी सीमाओं को भी पूरे मन से स्वीकारते हैं । जो सार्वजनिक मंच से भी दोष स्वीकारने का साहस रखते हैं। जिन्हें धर्मसंकट उत्पन्न न करनेवाले मित्र अधिक प्रिय हैं। जो औरों की अव्यक्त, अप्रस्तुत अपेक्षाओं की भी पूर्ति करने से नहीं चूकते ।
Shivrayanchi Dharmniti
- Author Name:
Dr. Ismail Pathan
- Book Type:

- Description: सतराव्या शतकातील धर्मश्रद्ध वातावरणात छत्रपती शिवाजी महाराजांनी दख्खनमध्ये स्वबळावर हिंदवी स्वराज्य स्थापन केले. अर्थात शिवरायांचा सर्वधर्मसमभावाचा विचार त्यांच्या या हिंदवी स्वराज्याचा मूलाधार होता. खरं तर छत्रपती शिवाजी महाराजांची हिंदू धर्मावर निष्ठा होती. ते धर्माभिमानीही होते, तरीही ते धार्मिक स्वातंत्र्याचे पुरस्कर्ते होते. त्यांनी नेहमीच सहिष्णुतेचे धोरण अवलंबले आणि आपल्या राज्यात सर्व जातिधर्मांच्या लोकांना आश्रय दिला. इतकंच नाही, तर कोणत्याही स्वरूपात धर्मभेद, जातीभेद न करता महाराजांनी शूर, पराक्रमी आणि एकनिष्ठ लोक आपल्याभोवती गोळा केले. त्यांनी कायमच हिंदू आणि मुस्लीम धर्माबद्दल उदार आणि पुरोगामी दृष्टिकोन बाळगला. स्वराज्यातील सर्व धर्मांच्या बांधवांना सन्मान देत सामाजिक सलोखा निर्माण करत सर्वार्थाने हिंदवी स्वराज्य बळकट केले. जगभरात सर्वांनीच गौरविलेल्या शिवरायांच्या या सहिष्णू धार्मिक धोरणाची प्राचार्य डॉ. इस्माईल पठाण यांनी आपल्या या ग्रंथात साधार, तपशीलवार चर्चा केली असून समाजस्वास्थ्याच्या दृष्टिकोनातून ती मार्गदर्शक ठरणारी अशी आहे. वाचक त्याचं दमदार स्वागत करतील अशी आशा. Shivrayanchi Dharmniti | Dr. Ismail Pathan शिवरायांची धर्मनीती | डॉ. इस्माईल पठाण
Janjatiya Navjagran
- Author Name:
Rahul Singh
- Book Type:

- Description: ‘जनजातीय नवजागरण’ पुस्तक जनजातीय यानी आदिवासी सन्दर्भों के इतिहास में बिखरे पड़े तथ्यों को जुटाकर जनजातीय नवजागरण का एक नैरेटिव खड़ा करती है; बांग्ला, मराठी और हिन्दी क्षेत्रों के बहुश्रुत नवजागरणों के बरक्स जनजातीय नवजागरण की एक सैद्धान्तिकी निर्मित करती है; और प्रादेशिक नवजागरणों से जनजातीय नवजागरण को अलगाने के सूत्र प्रस्तावित करती है। इसके लिए यह ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी और रानी विक्टोरिया के अधीन औपनिवेशिक भारत में हुए जनजातीय सामाजिक-धार्मिक आन्दोलनों की गहरी पड़ताल करती है और उससे हासिल निष्कर्षों को साझा करती है।औपनिवेशिक दबावों के विरुद्ध जनजातीय समूह कैसे संगठित होकर प्रतिरोध और परिवर्तन की इबारत लिखते हैं? कम्पनी राज और अंग्रेजी राज के बढ़ते अमानवीय दमन के समान्तर वे कैसे अपनी रणनीति में बदलाव करते चले जाते हैं? ऐसे अनेक प्रश्नों पर विचार करते हुए यह पुस्तक उजागर करती है कि शेष भारत की तुलना में आदिवासी समुदायों के लिए अंग्रेजी राज एक गहन सभ्यतागत संकट बनकर आया था जो उनके लिए अस्तित्वगत संकट का सबब बन गया था। उनका अभूतपूर्व प्रतिरोध इसी संकट की तीव्रतर प्रतिक्रिया था। उसका आधार थी उनकी स्वाधीनता की चेतना जो उनकी सहजीवी-समावेशी जीवनदृष्टि, सदियों पुराने सामुदायिक अनुभवों और परम्पराओं से उपजी थी, न कि किसी कथित आधुनिक विचार अथवा संस्थान के सम्पर्क से। इस ऐतिहासिक परिघटना की पूरी प्रक्रिया को यह पुस्तक उसकी सामाजिकता और ऐतिहासिकता के साथ दर्ज करती है। अंग्रेजी राज ने आदिवासी समुदायों की पूरी विरासत को जिस व्यवस्थित तरीके से ध्वस्त किया उसकी एक बानगी झारखंड के सन्दर्भ में इस पुस्तक में देखी जा सकती है। तथ्यों को विमर्शों के ताने-बाने में यह पुस्तक बहुत सावधानीपूर्वक पिरोती है। वस्तुतः यह एक विचारोत्तेजक किताब है, जो इतिहास की प्रचलित समझदारी को चुनौती देते हुए विमर्श की एक नई जमीन विकसित करती है। यह अकादमिक और गैर-अकादमिक दोनों समूहों के लिए जरूरी है।
Gay Crow
- Author Name:
Vishwas Pethe +1
- Book Type:

- Description: अफाट बुद्धिमत्ता, दैदिप्यमान करिअर आणि अमेरिका यापेक्षा चांगलं काय मिश्रण असू शकत? हे सर्व विश्वासला मिळालं. पण समलैंगिकता आणि त्यामागून आलेला एड्स सारखा दुर्धर आजार हे सुद्धा आयुष्यात आले. इतक्या क्लिष्ट गोष्टी एका वेळेस घडत असताना इतर शारीरिक आजार समोर उभे राहिले. “आता मला आयुष्य पुरे झाले. मी जातो.” अशा स्वच्छ निर्णयापर्यंत पोहोचलेल्या विश्वासला एक मानसोपचरतज्ज्ञ मिळाला जो हे सर्व उकलून बघायला मदत करणार होता. आणि त्यातून आयुष्याचा काही वेगळा अर्थ लागतो का हे विश्वास शोधणार होता.असं काय होतं त्याच्या आयुष्यात? थेरपिस्ट बरोबर शोधतांना त्याला काय सापडलं?या सर्व प्रश्नांची खरी आणि जबरदस्त प्रामाणिक उत्तरे विश्वास ने दिली आहेत. प्रत्यक्ष आयुष्य हे कथेपेक्षा चमत्कारिक आणि धक्कादायक असू शकते. याचा प्रत्यक्ष स्वानुभव घेतलेल्या माणसाने हिमतीने सांगितलेली ही गोष्ट आहे.- डॉ. भूषण शुक्ला, मनोविकार तज्ज्ञ, पुणे गे क्रो | विश्वास पेठे | अनुवाद : डॉ. शाश्वत शेर Gay Crow | Vishwas Pethe Translated By : Dr. Shashvat Shere
Rakesh Aur Parivesh : Patron Mein
- Author Name:
Jaidev Taneja
- Book Type:

-
Description:
कोई व्यक्ति और विशेषत: रचनाकार अपने बारे में क्या कहता है—इससे अधिक महत्त्वपूर्ण और बड़ा सच यह है कि दूसरे उसके बारे में क्या कहते हैं? यह पत्र-संग्रह दूसरों के आईने में राकेश के व्यक्तित्व, कृतित्व और परिवेश की एक प्रामाणिक तस्वीर पेश करता है। यहाँ केन्द्र में राकेश हैं और परिधि पर उनके समकालीन।
लेखकीय आत्म-सम्मान और अपने अधिकारों के लिए हर किसी से कभी भी और कहीं भी त्याग-पत्र देने, वॉक आउट करने और लड़ने-झगड़ने को सदैव तत्पर, निश्छल आत्मीयता की तलाश में दर-दर भटकते सैलानी, भीतर से असुरक्षित, अकेले और बेचैन लेकिन बाहर से छतफाड़ ठहाके लगानेवाले हरदिल अज़ीज़ अनूठे दोस्त, एक साथ ज़बरदस्त बौद्धिक एवं अहंकारी तथा अत्यधिक संवेदनशील और भावुक अपने सिद्धान्तों के लिए अडिग और अटूट तथा अपने लेखन के लिए अत्यन्त अस्थिर, बेसब्र और बेचैन मोहन राकेश के अन्तर्विरोधों की कोई सीमा नहीं है। इस पुस्तक में संकलित राकेश और उनके सहयात्रियों के 721 पत्र उनके जटिल व्यक्तित्व को, पाठकों के लिए, बड़े प्रामाणिक एवं विश्वसनीय रूप में एकदम पारदर्शी बना देते हैं। इनमें उनके चेतन-अवचेतन के अँधेरे-गुह्य कोनों और परिवेश के नेपथ्य की जीवन्त छवियों एवं धड़कनों को साफ़-साफ़ पहचाना और सुना जा सकता है।
नि:सन्देह, यह पुस्तक राकेश के पाठकों, अध्येताओं और शोधार्थियों को राकेश के संघर्षमय जीवन और वैविध्यपूर्ण रचनाकर्म के मर्म को गहराई से जानने-समझने में न केवल रोचक, दुर्लभ एवं महत्त्वपूर्ण सामग्री ही उपलब्ध कराती है, बल्कि हिन्दी के पत्र-साहित्य में एक उल्लेखनीय भूमिका भी निभाती है।
Swami Ramanand
- Author Name:
Kanhaiya Singh
- Book Type:

-
Description:
स्वामी रामानन्द एक युगपुरुष थे। चौदहवीं शताब्दी में उन्होंने दक्षिण भारत से भगवान विष्णु की भक्ति को रामभक्ति के रूप में लाकर प्रतिष्ठित किया और विपरीत प्रतीत होने वाली दो धाराओं में समन्वय और सामंजस्य स्थापित किया।
उन्होंने निर्गुण और सगुण भक्ति के समन्वय का कार्य किया। उनके अनुसार ये दोनों ही भक्तिमार्ग विधेय हैं। इन दोनों को जोड़ने का सेतु उनका 'राम-नाम' का मंत्र बना। नाम का जप करना निर्गुण और सगुण दोनों ही मार्गों के कवियों ने स्वीकार किया।
स्वामी जी ने यह कहा कि ब्राह्मण शूद्र सहित चारों वर्ण के लोग भक्ति के अधिकारी हैं। उनके द्वारा समन्वय के सम्बन्ध में कहा गया -
'जाति पाँति पूछै नहिं कोई। हरि को भजै सो हरि का होई।'
उनके अनुसार पुरुष की भाँति स्त्री भी भक्ति की कारिणी है।
स्वामी जी ने इस प्रकार अपने समन्वय और सामंजस्य के द्वारा एक प्रबल-सबल राष्ट्र- निर्माण की वह भूमिका बनाई जो भारत को एक भव्य-दिव्य भारत बनाकर विश्वगुरु के पद पर प्रतिष्ठित कर सकती है।
Aisa Kyon Hota Hai
- Author Name:
Turshan Pal Pathak
- Book Type:

- Description: This book does not have any description.
Guntavnuk Darala Mahit Asayalacha Havya Ashya Sharebajarachya Yuktichya Goshti
- Author Name:
Swaminathan Annamalai +1
- Book Type:

- Description: शेअर बाजारात नवोदित आणि अनुभवी असलेल्यांसाठीही हे पुस्तक आहे. भारतीय शेअर बाजाराबद्दल फारशा माहीत नसलेल्या गोष्टी लेखकाने अत्यंत सोप्या, तरीही रोचक पद्धतीने सांगितलेल्या आहेत.’ - फिरोज व्ही. आर. वैश्विक सेवाप्रमुख, उपाध्यक्ष ‘एस.ए.पी.’ आणि इंडिया इन्क्ल्यूजन फाउंडेशनचे संस्थापक हे पुस्तक तुम्ही का वाचायला हवे? हे पुस्तक वाचून झाल्यानंतर तुम्हाला खालील गोष्टींबद्दल समजेल : 1. शेअर बाजार जितका वेळ चालू असतो तितका वेळ संगणकासमोर बसला नाहीत, तरीही पैसे कमावता येतात. 2. भरपूर नफा मिळवून देणारे शेअर्स पटकन ओळखून आपला फायदा करून घेता येतो. 3. शेअर बाजारात ज्या शेअर्सचे व्यवहार आता होत नाहीत अशा अ-सूचीबद्ध शेअर्सची हाताळणी. 4. भीडभाड न बाळगता ऑप्शन्स विकून टाकणे आणि नफ्याची टक्केवारी वाढवणे. 5. आयपीओबद्दल आणि आयपीओकरिता पैसे कसे उभे करावेत याबद्दल माहिती. 6. कागदी शेअर्सचे रूपांतरण इलेक्ट्रॉनिक शेअर्समध्ये (डिमटेरिअलायझेशन) कसे करावे. 7. बीईईएस (इशएड) म्हणजे काय, तो गुंतवणुकीचा जोखीममुक्त पर्याय आहे का? 8. स्टॉक स्क्रीनर्सशी ओळख. 9. शेअर बाजाराला कोणत्या प्रकारच्या घोटाळ्यांमुळे फटका बसू शकतो. 10. हिंदू अविभक्त कुटुंबाची (कणऋ) स्थापना करून आयकर वाचवता येऊ शकतो. Guntavnuk Darala Mahit Asayalacha Havya Ashya Sharebajarachya Yuktichya Goshti - Swaminathan Annamalai गुंतवणूकदाराला माहित असायलाच हव्या अश्या शेअरबाजारच्या युक्तीच्या गोष्टी - स्वामिनाथन अन्नामलाई
Ins and Outs of INDIAN THEATRE
- Author Name:
H S Shivaprakash
- Rating:
- Book Type:

- Description: Anthology of Essays on Contemporary Indian Theatre
Shiksha Ke Madhyam Se Rashtra-Nirman
- Author Name:
Ramesh Pokhriyal 'Nishank'
- Book Type:

- Description: हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने जिस 'न्यू इंडिया' की कल्पना की है, उसकी आधारशिला के रूप में भारत को एक ऐसी शिक्षा नीति की आवश्यकता थी, जो तेजी से बदलते समाज और गतिशील दुनिया की चुनौतियों को अवसरों में बदल सके और खुशहाल भारत का निर्माण कर सके। गहन अध्ययन-मनन और चिंतन के उपरांत तैयार की गई नई शिक्षा नीति-2020 पूर्णतया भारत-केंद्रित होने के साथ गुणवत्तापरक, नवाचारयुक्त, व्यावहारिक, प्रौद्योगिकीयुक्त, अंतरराष्ट्रीय, वैज्ञानिक और कौशलयुक्त है । कुल मिलाकर नई शिक्षा नीति NEP-2020 130 करोड़ से अधिक भारतीयों की आकांक्षाओं का प्रतिबिंब है। नई शिक्षा नीति-2020 ने भारतीय परंपरागत ज्ञान, संस्कृति, भाषाओं, परंपराओं और मानवीय मूल्यों के विकास पर विशेष जोर दिया है और इस नीति में स्पष्ट है कि शिक्षा केवल शिक्षकों और पुस्तकों से प्राप्त ज्ञान एवं जानकारी के बारे में नहीं है। यह उन मूल्यों, क्षमताओं और व्यवहार को विकसित करने के बारे में है, जो एक स्थिर समाज बनाने के लिए शांति, न्याय और समावेशिता के गुण विकसित करते हैं। निश्चित रूप से भारत को शिक्षा के आकर्षक केंद्र के रूप में स्थापित कर नई शिक्षा नीति भारत के विश्वगुरु बनने का मार्ग प्रशस्त करेगी।
I Gaze, Therefore I Am
- Author Name:
Subramoniam Rangaswami
- Rating:
- Book Type:

- Description: We live in a visual age. I Gaze, Therefore I Am is a book on medical gaze first described by Michel Foucault, French philosopher and historian of ideas. The journey the medical gaze has taken from its archaic beginnings to our era of digital culture has been noteworthy. In this book, Rangaswami takes us through this historic journey, blending stories from the history of science and medicine with a rich collection of tales from scriptures and legends as well as iconic episodes from his personal experience, stirring them in his unique style with a wide range of topics for academic discussions. This book is a compelling narrative of the shifting optics of gaze, especially medical gaze, poised in our age of human transition from Homo visualis to Homo virtualis.
Aadhunik Bhartiya Chintan
- Author Name:
Krishna Murari Mishra
- Book Type:

-
Description:
आधुनिक भारतीय चिन्तन पर हिन्दी ही नहीं, अन्य भारतीय भाषाओं में भी स्तरीय पुस्तकों का अभाव है। अंग्रेज़ी समेत अन्य विदेशी भाषाओं में उपलब्ध पुस्तकें प्रशंसा या निंदा के अतिवाद का शिकार हैं। साथ ही उनमें भारतीय चिन्तन के नाम पर प्राचीन भारतीय दर्शन का विश्लेषण-विवेचन है।
डॉ. विश्वनाथ नरवणे की पुस्तक ‘आधुनिक भारतीय चिन्तन’ उपर्युक्त अतिवादों से मुक्त है। वे किसी देशी-विदेशी चश्मे से अपने को मुक्त रखते हुए भारतीय चिन्तन के आधुनिक पहलुओं पर विचार करते हैं। इसमें प्रामाणिकता बनाए रखने की पूरी कोशिश है। वहीं समकालीन भारत में हो रहे परिवर्तनों को भी ध्यान में रखा गया है।
प्राचीन काल में भारत चिन्तन के मामले में अग्रणी था। लेकिन अब ऐसी स्थिति नहीं है। फिर भी पिछली दो शताब्दियों में चिन्तन-क्षेत्र में कुछ न कुछ चमक रही है। फिर भी उसके सम्यक् विवेचन-विश्लेषण वाली गम्भीर कृति नहीं दीखती। डॉ. नरवणे इसी अभाव को भरते हैं।
इस पुस्तक में भारतीय चिन्तन में नवयुग की शुरुआत करनेवाले राजा राममोहन राय, जिन्होंने पाश्चात्य चिन्तन को आत्मसात् करते हुए भारतीय चिन्तन-परम्परा पर मनन किया, के योगदान और मूल्यांकन का सार्थक प्रयास है। रामकृष्ण परमहंस द्वारा मानवीय दृष्टि अपनाने पर बल दिया गया। विवेकानंद के तेजस्वी चिन्तन, जिसमें धर्म के ऊपर समाज और सत्ता के ऊपर मनुष्य को स्थान देने की पुरअसर कोशिश है, का भी विस्तृत मूल्यांकन पुस्तक में है।
चिन्तन और कर्म की एकता पर बल देनेवाले चिन्तन को रवीन्द्रनाथ ठाकुर और महर्षि अरविंद ने नए आयाम दिए तो गांधी का दर्शन निकला ही कर्म से। महात्मा के दर्शन ने समकालीन दुनिया को प्रभावित किया। सर्वपल्ली राधाकृष्णन् ने भारतीय दर्शन परम्परा को और माँजने का प्रयास किया। इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए डॉ. नरवणे कुमारस्वामी और इक़बाल की चिन्तनधारा तक आते हैं।
डॉ. नरवणे की पद्धति सिर्फ़ चिन्तनपरक लेखन या कथन के विश्लेषण तक सीमित नहीं रहती। पिछले डेढ़ सौ वर्षों में भारतीय मानस को प्रभावित करनेवाले चिन्तकों की जीवनियों, उनके साहसपूर्ण संघर्षों और दुर्गम यात्राओं के विवरण तक का उपयोग स्रोत सामग्री के रूप में किया गया है।
महात्मा गांधी, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, रामकृष्ण और विवेकानंद जैसे चिन्तक पाश्चात्य चिन्तनधारा के समक्ष हीनभाव से नतमस्तक नहीं होते। वे अपने विश्वासों, आस्थाओं, भावनाओं या अविश्वास के लिए लज्जित नहीं होते। वहीं उनमें पाश्चात्य दर्शन के प्रति उपेक्षा भाव भी नहीं है। भारतीय चिन्तनधारा में इतिहास ही नहीं, भूगोल विशेषकर हिमालय, समुद्र और सदानीरा नदियों के योगदान का पता भी इस पुस्तक से चलता है।
कला और संगीत पर कम, पर साहित्य-चिन्तन पर अनेक उच्चस्तरीय कृतियाँ हैं पर उन आधुनिक चिन्तनधाराओं के अध्ययन का सार्थक प्रयास नहीं दीखता जिनके ऊपर हमारी सांस्कृतिक प्रगति टिकी हुई है। यह शायद इसलिए कि चिन्तन का विवेचन करना अत्यन्त कठिन काम है।
इस चुनौती का वरण डॉ. नरवणे ने किया है। वे आधुनिक भारतीय चिन्तन की बारीकियों और गुत्थियों को सुलझाने में कामयाब हुए हैं।
इस पुस्तक को न केवल भारतीय बौद्धिकता बल्कि दुनिया-भर के विद्वानों की सराहना मिली है। अरसे से अनुपलब्ध इस बहुचर्चित पुस्तक के प्रकाशन का अपना विशेष महत्त्व है।
Badalata Bharat - Paratantryatun mahasattekade
- Author Name:
Datta Desai
- Book Type:

- Description: बदलता भारत : पारतंत्र्यातून महासत्तेकडे... संपादन - दत्ता देसाई भारताचे बहुरूपदर्शक आणि समग्र चित्र रेखाटणारा संदर्भग्रंथ ! आपल्या देशाच्या स्वातंत्र्याची पंचाहत्तर वर्षे. असे स्वातंत्र्य आहे की जे जगात सर्वाधिक वर्चस्वशाली असणार्या ब्रिटिश सत्तेविरुध्द इथल्या कोट्यवधी जनतेने अथक संघर्ष करून मिळवले. जगाच्या इतिहासातील एक महान मुक्तिपर्व. एक असा गौरवशाली स्वातंत्र्यसंग्राम की ज्याने आधुनिक भारताला जन्म दिला आणि जगाच्या इतिहासावर आपली छाप उमटवली. असा इतिहास की ज्याने प्रत्येक देशप्रेमी व्यक्तीची मान आजही उंचावते. असे स्त्रीपुरुष 'नायक', नेते, समाजधुरीण, क्रान्तिकारक आणि महामानव की त्यांच्याविषयी आजही देशभर अपार आदर, प्रेम आणि अद्भुत आकर्षणही आहे. दोन शतकांचे विविध जनसमुदायांचे असे संघर्ष की ज्यांना अभिवादन केल्याशिवाय कोणीही भारतीय आजही पुढे जाऊ शकत नाही. या साऱ्याला मनोविकास प्रकाशन अभिवादन करत आहे 'बदलता भारत : पारतंत्र्यातून महासत्तेकडे... ' या आपल्या महाग्रंथाद्वारे! असा ग्रंथ की जो स्वातंत्र्य संग्रामाचा व स्वातंत्र्योत्तर देश उभारणीचा अनोख्या पद्धतीने अगदी मुळापासून वेध घेतो. ज्यात ‘रामायाण-महाभारत आणि भारतीय राष्ट्रवाद’, ‘छत्रपती शिवाजी, मराठेशाही आणि स्वातंत्र्याची वाटचाल’, ‘जालियनवाला बाग ते नमस्ते ट्रम्प’, ‘विवेकानंदांचा धर्म आणि त्यांची भारताची कल्पना’, ‘सावरकर-जीना आणि द्विराष्ट्रवाद’, ‘डावी कॉंग्रेस, उजवे राजकारण आणि सुभाषचंद्र बोस’, ‘चित्रपटांतून घडणारं भारतीयतेचं दर्शन’, ‘भारतीयता आणि बहुसांस्कृतिकता’ अशा विविध विषयांची सखोल मांडणी आहे. एक असा ग्रंथ की ज्याच्या दोन खंडातील आठ विभागात गुंफलेले साठ लेख आपल्याशी बोलतात - या सार्या गुंतागुंतीच्या आणि रोमांचकारी इतिहासावर. ते उकलतात या देशाचे असे अंतरंग की जे जितके विलोभनीय आहे तितकेच विषण्ण करणारेही आहे. विविध नामवंत लेखकांनी स्वतंत्र दृष्टिकोनांमधून आणि आपापल्या परिप्रेक्ष्यांतून भारतीय जीवनाच्या विविध क्षेत्रांचे आणि पैलूंचे केलेले परखड विश्लेषण! ज्यातून आपल्या समोर येतो भारताच्या भविष्याची निश्चित अशी दिशा उलगडणारा महाग्रंथ!! अनुक्रमणिका खंड : १ विभाग १ : आधुनिक भारताची जडणघडण : वाटा आणि वळणे १. बहुभाषिक राष्ट्र : इतिहास आणि भविष्य - अविनाश पांडे, रेणुका ओझरकर २. आर्यवादाचे औचित्य आणि भारतीय राष्ट्रवाद - हेमंत राजोपाध्ये ३. रामायण-महाभारताचे ‘लोकप्रिय’ राजकारण - श्रद्धा कुंभोजकर ४. प्रतिमांच्या कोंदणात अडकलेला मराठा इतिहास - प्राची देशपांडे ५. १८५७ : उठाव की स्वातंत्र्ययुद्ध? - अरविंद गणाचारी ६. इतिहासलेखन : दुहीचे की एकतेचे साधन? - जास्वंदी वांबुरकर विभाग २ : राजकीय इतिहास : विरोधाभास आणि वास्तव ७. राष्ट्रउभारणी : मुस्लिमांचे योगदान आणि भारतीयत्व - बशारत अहमद ८. भेदभावाच्या कोंडीत सापडलेला मुस्लीम राष्ट्रवाद - सरफराज अहमद ९. फाळणीआणि जीना-सावरकर - श्याम पाखरे १०. नेताजींचे‘गूढ’, कॉंग्रेस आणि उजवे राजकारण - रवी आमले ११. लोकशाही समाजवादाची वेगळी वाट - संजय मं गो १२. कम्युनिस्ट पक्ष : चढउताराचा आलेख - अशोक चौसाळकर १३. जालियनवाला बाग ते नमस्ते ट्रम्प : विरोधाभासी भारत - एस पी शुक्ला विभाग ३ : साहित्य-कला : भारतीय स्वातंत्र्याचे दर्शन १४. शोध सांगितिक भारतीयतेचा - नीला भागवत १५. मराठी कविता :स्वातंत्र्याचे उद्गार - रणधीर शिंदे १६. रंगभूमी : ‘राष्ट्रीय करमणूक’ की सामाजिक कल्लोळाचा वेध? - मकरंद साठे १७. भारतीयतेच्या शोधात हिंदी कादंबरी - सूर्यनारायण रणसुभे १८. संग्रहालये-स्मारकातील संस्कृती - दीपक घारे १९. दृश्यकला आणि बदलती भारतीय अभिव्यक्ती - नूपुर देसाई २०. लोकप्रिय भारतीय आरसा : हिंदी चित्रपट! - अशोक राणे विभाग ४ : लोकशाही, राजकीय बहुलता आणि राष्ट्रीय सुरक्षा २१. नागरिकत्व, राष्ट्र आणि लोकशाही : नवी आव्हाने - गणेश देवी २२. भारतीय लोकशाहीचे वेगळेपण ! - सुहास पळशीकर २३. राज्य कायद्याचे, पण न्याय किती? - उद्धव कांबळे २४. उपखंडातील भळभळती जखम : काश्मीर - प्रताप आसबे २५. पूर्वोत्तर भारत : सप्तभगिनी आणि सापत्नभाव - गायत्री लेले २६. शक्तिमान शेजारी आणि राष्ट्रवादांमधील तणाव - परिमल माया सुधाकर २७. भारतीय लष्कर आणि राष्ट्रीय सुरक्षा - विजय खरे २८. गुप्तचर यंत्रणा : सुशासन की सत्तेचे केंद्रीकरण? - अनंत बागाईतकर २९. संघराज्य,स्वायत्तता आणि अर्थपूर्ण लोकशाही - जयंत लेले ३०. स्वातंत्र्य - गोपाळ गुरु अनुक्रम खंड : २ विभाग १ : धर्म आणि संस्कृती : एकवचनी की बहुवचनी? १. विवेकानंद : वेष भगवा, स्वप्न समाजवादी भारताचे! - दत्तप्रसाद दाभोळकर २. धम्मक्रांतीचे सांस्कृतिक राजकारण - रावसाहेब कसबे ३. जमातवाद, दंगली आणि एकात्मता - इरफान इंजिनीयर ४. बदनाम धर्मनिरपेक्षता : एकात्म भारत घडणार कसा? - किशोर बेडकीहाळ ५. भारतीयता आणि सांस्कृतिक विविधता? - शांता गोखले ६. लोकसंस्कृतीचे सामर्थ्य आणि स्वातंत्र्य! - तारा भवाळकर ७. वेध विद्रोही जनसंस्कृतीचा - सचिन गरुड विभाग २ : राष्ट्रीयतेची साधने आणि स्वातंत्र्याची माध्यमे ८. हंटर ते नवे शैक्षणिक धोरण : विद्यार्थीकेंद्री शिक्षणाचा अभाव - डॉ.हेमचंद्र प्रधान ९. उच्चशिक्षण : सामाजिककडून आर्थिक मक्तेदारीकडे! - मिलिंद वाघ १०. राष्ट्रीय संस्था : देशाचा गौरवास्पद आधार - श्रीरंजन आवटे ११. विज्ञान-तंत्रज्ञान : भारत मागे पडतोय? - डी रघुनंदन १२. जनतेचे आरोग्य आणि राष्ट्राचे ‘स्वास्थ्य' - अनंत फडके १३. मैदान : क्रीडासंस्कृतीचे आणि राष्ट्रवादाचे? - पराग फाटक, ओंकार डंके १४. प्रसारमाध्यमांचे स्वातंत्र्य आणि राष्ट्रवादाचे कंपनीकरण - अभिषेक भोसले विभाग ३ : भारतीय विकासाचे पेच आणि पर्याय १५. वसाहत ते ‘अच्छे दिन' : विकासाचा पेच कायमचाच - शमा दलवाई १६. टाटा-बिर्ला ते अंबानी-अदानी : स्वातंत्र्योत्तर साटेलोटे-राज्य! - सचिन रोहेकर १७. शेतीची कोंडी आणि ‘इंडिया विरुद्ध भारत' - जयदीप हर्डीकर १८. ‘माता', ‘मंदिरे' आणि भारतीय जल-सिंचन! - प्रदीप पुरंदरे १९. सहकार : मार्ग जुना, दृष्टी नवी - गजानन खातू २०. सार्वजनिक क्षेत्र आणि खासगीकरणाचे ग्रहण - संजीव चांदोरकर २१. ‘विकासा'पलीकडचा गांधीमार्ग - पराग चोळकर २२. पर्यावरणीय संकट आणि विकासाचा शाश्वत पर्याय - के जे जॉय विभाग ४ : नवा भारत घडवणाऱ्या शक्ती २३. आदिवासींचा न संपलेला स्वातंत्र्यलढा! - देवकुमार आहिरे २४. भटक्या-विमुक्तांचे राष्ट्र कोणते? - नारायण भोसले २५. जातीचे द्वैत आणि राष्ट्रवादातील दुभंग - दिलीप चव्हाण, देवेंद्र इंगळे २६. बदलते जातवास्तव आणि अस्मितांचे राजकारण - शैलेंद्र खरात २७. अनिवासी भारतीय : ‘काळे पाणी' ते ‘गोरे' पाणी? - आनंद करंदीकर २८. कामगार चळवळीचे बदलते स्वरूप आणि नवी दिशा - अजित अभ्यंकर २९. सती ते पद्मावती : जोहार स्त्रियांचाच! - माया पंडित ३०. महिलांचे राजकीय नेतृत्व : बदल घडवेल? - संध्या नरे-पवार
Atma Nirbhar Bharat : Vol. 2
- Author Name:
M. Veerappa Moily
- Book Type:

- Description: लेखक, राजनेता और अर्थशास्त्राी वीरप्पा मोइली की प्रसिद्ध पुस्तक-श्ाृंखला ‘अनलेशिंग इंडिया’ का यह दूसरा खंड भारत के जल-संसाधनों और सिंचाई-व्यवस्था पर केन्द्रित है। देश में उपलब्ध जल-संसाधनों के प्रबन्धन, नियोजन और विकास पर मौलिक समझ के साथ चर्चा करते हुए इस पुस्तक में लेखक ने पानी के सम्यक् उपयोग और उसकी सम्भावनाओं को नई दृष्टि से देखने का आह्वान किया है। पुस्तक का फोकस मुख्यतः सिंचाई है, और अपने गहन विश्लेषण में वह इस निष्कर्ष पर पहुँचती है कि देश की प्रगति के लिए जल-संसाधनों का मितव्ययी और समान उपभोग बेहद जरूरी है। पुस्तक में जल-संसाधनों के सम्मुख उपस्थित वर्तमान और भावी चुनौतियों को रेखांकित किया गया है और उनसे निबटने की व्यावहारिक विधियों पर भी विचार किया गया है। विषय के लिहाज से अत्यन्त समीचीन और प्रासंगिक यह पुस्तक छात्राों, शोधकर्ताओं और नीति-निर्माताओं के लिए समान रूप से उपयोगी है।
Ab Ve Vhan Nahin Rehte
- Author Name:
Rajendra Yadav
- Book Type:

- Description: मोहन राकेश, कमलेश्वर और राजेन्द्र यादव की त्रयी को ‘नई कहानी’ आन्दोलन के प्रवर्त्तक और उन्नायक के रूप में जाना जाता है। प्रख्यात आलोचक डॉ. नामवर सिंह को नई कहानी की प्रवृत्तियों को सूत्रबद्ध करने का श्रेय है। यह बात ग़ौरतलब है कि आज़ादी के बाद के ये चार शिखर रचनाकार आपस में गहरे मित्र थे, 1950 तथा ’60 के दशक में इन लोगों के बीच ज़बरदस्त अन्तर्संवाद भी था। आलोचना-प्रत्यालोचना और आत्मालोचना से भरे इस अन्तर्संवाद ने उस आन्दोलन को बल दिया, इन रचनाकारों को भी इससे ऊर्जा मिली यह वह समय था जब भारत का नया समाज बन रहा था और साहित्य का भी स्वरूप बदल रहा था। ऐसे में कुछ भी नया करने के लिए गहन विचार-विमर्श जरूरी था और उसका सबसे सुगम मार्ग था पत्र। मित्रों की स्वस्थ आलोचना उस समय का युगधर्म था। जाहिर है, रचनाशीलता के विकास में भी उसकी गहरी भूमिका थी। राजेन्द्र यादव के नाम मोहन राकेश, कमलेश्वर और डॉ. नामवर सिंह तथा राजेन्द्र यादव के नामवर सिंह के लिए पत्रों का यह संग्रह अपने समय के लेखकीय अन्तर्संवादों का जीवन्त दस्तावेज़ है। इनके माध्यम से इन लेखकों के रचनात्मक संघर्ष को भी समझा जा सकता है और साहित्य की उन अन्तर्ध्वनियों को भी, जिन्हें साहित्य के किसी इतिहास के माध्यम से सुन-समझ पाना सम्भव नहीं है।
Tyag, Tapasya Aur Balidan Ki Parampara Ke Vahak Shri Guru Tegabahadur
- Author Name:
Dr. Kuldip Chand Agnihotri
- Book Type:

- Description: सप्तसिंधु क्षेत्र की कुछ घटनाएँ ऐसी हैं, जिन्होंने संपूर्ण भारतवर्ष के इतिहास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इनमें सबसे पहली घटना तो मोहनजोदड़ो, हड़प्पा सभ्यता का उदय था, जिससे कालांतर में सिंधु सरस्वती सभ्यता का विकास हुआ। दरअसल वर्तमान भारतीय विश्वासों, आस्थाओं एवं पूजा-पद्धति का आधार सिंधु-सरस्वती घाटी में ही मिलता है। कुरुक्षेत्र में हुआ महाभारत का युद्ध इस क्षेत्र की ऐसा घटना है, जिसने पूरे हिंदुस्थान की सेनाओं को सप्तसिंधु के मैदानों में लाकर खड़ा कर दिया था। इन्हीं वैदिक परंपराओं का विकास श्रवण परंपराओं में हुआ, जिनके संश्लेषण की आधार भूमि भी सप्तसिंधु क्षेत्र ही बना। उसके सैकड़ों साल बाद यही सप्तसिंधु का क्षेत्र अरब से उठी सामी चिंतन की आँधी का शिकार हुआ। हमले क्योंकि सप्तसिंधु क्षेत्र से ही होते थे, इसलिए इसका सर्वाधिक दंश भी इसे ही झेलना पड़ा । लेकिन इस नई आफत का सामना कैसे किया जाए? यह उस युग की सबसे बड़ी चुनौती थी। इस मरहले पर दशगुरु परंपरा का उदय होना दैवी योजना ही कही जा सकती है। गुरु नानक देवजी इस परंपरा के संस्थापक थे। दशगुरु परंपरा का मूल्यांकन आध्यात्मिक क्षेत्र में तो हुआ है, लेकिन उसके ऐतिहासिक व सामाजिक क्षेत्र में योगदान को वरीयता नहीं दी गई। यह ऐसा क्षेत्र है, जिसमें कुदाल चलाने की आवश्यकता है। यह पुस्तक दशगुरु परंपरा के इसी क्षेत्र में किए गए योगदान को प्रकाश में लाने का स्तुत्य प्रयास है।
Customer Reviews
0 out of 5
Book
Hurry! Limited-Time Coupon Code
Logout to Rachnaye
Offers
Best Deal
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit, sed do eiusmod tempor incididunt ut labore et dolore magna aliqua
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit, sed do eiusmod tempor incididunt ut labore et dolore magna aliqua. Ut enim ad minim veniam, quis nostrud exercitation ullamco laboris nisi ut aliquip ex ea commodo consequat.
Enter OTP
OTP sent on
OTP expires in 02:00 Resend OTP
Awesome.
You are ready to proceed
Hello,
Complete Your Profile on The App For a Seamless Journey.