
Jamsetji Tata - A Complete Biography
Author:
Prashant KumarPublisher:
Prabhat PrakashanLanguage:
EnglishCategory:
Biographies-and-autobiographies0 Reviews
Price: ₹ 200
₹
250
Unavailable
Jaamsetji Tata was an Indian
entrepreneur and industrialist who founded the Tata Group. It is one of the largest and most respected business conglomerates in India. He was born on March 3, 1839, in Navsari, Gujarat, In- dia, into a Parsi family of traders. In 1868, he founded a small trad- ing company in Mumbai, which later grew into the Tata Group. It deals with steel, automobiles, telecommunications, hospitality, and many other sectors.
Jamsetji Tata was known for his visionary thinking, his com- mitment to innovation, and his deep sense of social responsibility. He believed that business could be a powerful force for good, and he used his wealth and influence to support causes such as education, healthcare, and social welfare. Jamsetji's legacy continues to inspire and influence business leaders and entrepreneurs in India and around the world. Jamsetji passed away on May 19, 1904. His vision and values continue to live through the Tata Group and the many institutions
he founded, including the Indian Institute of Science and the Tata Trusts.
ISBN: 9789355218025
Pages: 144
Avg Reading Time: 5 hrs
Age : 18+
Country of Origin: India
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- Description: ‘गिरमिटियों’ के ‘गिरमिट’ के अनुभवों के बारे में अधिकांशतः इतिहासकारों अथवा प्रवासियों के उत्तराधिकारियों द्वारा ही लिखा गया है। हम यहाँ एक ऐसे ‘गिरमिटिया’ के बारे में जानने जा रहे हैं जिसने अपने अनुभवों को एक लेखक के माध्यम से कलमबद्ध कराया है। वह असाधारण गिरमिटिया थे—तोताराम सनाढ्य। गिरमिट प्रथा को बन्द कराने में तोताराम के वृत्तान्तों का ही राष्ट्रवादियों ने सहारा लिया। सन् 1914 में फीजी से भारत लौटने के तत्काल बाद ही तोताराम सनाढ्य ने फीजी में बिताए अपने 21 वर्ष के जीवन और गिरमिट प्रथा के अनुभवों को प्रकाशित कराया। तोताराम के सारे बयान बनारसीदास चतुर्वेदी ने ‘फिजीद्वीप में मेरे 21 वर्ष’ में न लिखकर वे ही भाग प्रकाशित करवाए जो उस वक्त चल रहे कुली-प्रथा अभियान के लिए उचित थे। तोताराम के वे संस्मरण अप्रकाशित ही रहने दिए जो फीजी गए भारतीयों तथा फीजीवासियों की सामाजिक और धार्मिक-सांस्कृतिक स्थिति के बारे में थे। यह पांडुलिपि सुरक्षित रखी रही। प्रस्तुत पुस्तक में तोताराम अपनी स्मृति से बनारसीदास चतुर्वेदी को फीजी के अपने संस्मरण सुना रहे हैं और लिप्यन्तर कराते जा रहे हैं। चतुर्वेदी जी ने लेखक के संस्मरण के मूल रूप की चीड़-फाड़ न करके उन्हें ज्यों-का-त्यों लिखा है। ‘भूतलेन की कथा’ एवं अन्य अप्रकाशित वृत्तान्तों में बनारसीदास चतुर्वेदी का हस्तक्षेप न के बराबर दिखता है और संवाद को ज्यों-का-त्यों रखने का प्रयास किया है। इसी कारण जहाँ-तहाँ व्याकरण की ख़ामियाँ आई हैं। गिरमिटियाओं के इतिहास-लेखन में इतिहासकारों ने गिरमिटियाओं की ख़ुद की आवाज़ को उतनी महत्ता नहीं दी जितनी कि अन्य पक्षों को। यह पुस्तक इतिहास लेखन की उसी कमी को पूरा करने तथा गिरमिटियाओं की ख़ुद की आवाज़ की महत्ता को सामने लाने का एक प्रयास है। — भूमिका से
Shailendra
- Author Name:
Indrajeet Singh
- Book Type:
- Description: जिस तरह कहानी लिखते लिखते प्रेमचंद कहानी का प्रयाय बन गये, उसी तरह शैलेंद्र गीत रचते रचते गीतों के प्रेमचंद बन गए। शैलेंद्र को इश्क़, इंक़लाब, और इंसानियत के कवि के रूप में जाना जाता है। नामवर सिंह के अनुसार "शैलेंद्र की कविताएँ सामाजिक सरोकारों से जुड़ी हुई हैं। वे सही और सच्चे अर्थों में जनकवि थे।
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